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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक हैं? गौतम ! परमावधिज्ञानी का ज्ञान साकार होता है और दर्शन अनाकार होता है । इसलिए ऐसा कहा गया है कि यावत् जिस समय देखता है उस समय जानता नहीं । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना। भगवन् ! क्या केवलीज्ञानी जिस समय परमाणुपुद्गल को जानता है, उस समय देखता है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परमावधिज्ञानी के समान केवलज्ञानी के लिए भी कहना । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध । भगवन् यह इसी प्रकार है। शतक-१८ - उद्देशक-९ सूत्र-७५२ राजगह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! क्या भव्य-द्रव्य-नैरयिक- भव्य-द्रव्य-नैरयिक हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य-द्रव्य-नैरयिक भव्य-द्रव्य-नैरयिक हैं ? गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य-नैरयिक कहलाता है। इस कारण से ऐसा यावत् कहा गया है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं? गौतम ! जो तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य अथवा देव पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक कहलाता है । इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक के विषय में समझना । अग्निकाय, वायुकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतरिन्द्रिय पर्याय में जो कोई तिर्यञ्च या मनष्य उत्पन्न होने के योग्य हो, वह भव्य-द्रव्य-अग्निकायिकादि कहलाता है । जो कोई नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य या देव, अथवा पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह भव्य-द्रव्य-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिक कहलाता है । इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में (समझ लेना) । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में नैरयिकों के समान जानना। भगवन् ! भव्य-द्रव्य-नैरयिक की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की कही गई है। भगवन् ! भव्य-द्रव्य-असुरकुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है । इसी प्रकार अप्कायिक की स्थिति जानना | भव्य-द्रव्यअग्निकायिक एवं भव्य-द्रव्य-वायुकायिक की स्थिति नैरयिक के समान है । वनस्पतिकायिक की स्थिति पृथ्वीकायिक के समान है । (भव्य-द्रव्य) द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय की स्थिति भी नैरयिक के समान जानना । (भव्यद्रव्य) पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम काल की है । (भव्यद्रव्य) मनुष्य की स्थिति भी इसी प्रकार है । (भव्य-द्रव्य) वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देव की स्थिति असुरकुमार के समान है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१८ - उद्देशक-१० सूत्र-७५३ राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार पर रह सकता है ? हाँ, गौतम ! रह सकता है । (भगवन् !) क्या वह वहाँ छिन्न या भिन्न होता है ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं । क्योंकि उस पर शस्त्र संक्रमण नहीं करता । इत्यादि सब पंचम शतक में कही हुई परमाणु-पुद्गल की वक्तव्यता, यावत् हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार उदकावर्त्त में यावत् प्रवेश करता है ? इत्यादि वहाँ शस्त्र संक्रमण नहीं करता, (तक कहना)। सूत्र-७५४ भगवन् ! परमाणु-पुद्गल, वायुकाय से स्पृष्ट है, अथवा वायुकाय परमाणु-पुद्गल से स्पृष्ट है ? गौतम ! परमाणु-पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट है, किन्तु वायुकाय परमाणु-पुद्गल से स्पृष्ट नहीं है । भगवन् ! द्विप्रदेशिक-स्कन्ध मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 115
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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