________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-७४७
भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुखसम्पन्न देव लवणसमुद्र के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ हैं । भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुखी देव धातकीखण्ड द्वीप के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! वे समर्थ हैं । भगवन् ! क्या इसी प्रकार वे देव रुचकवर द्वीप तक चारों ओर चक्कर लगाकर आने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ हैं । इससे आगे के द्वीप-समुद्रों तक देव जाता है, किन्तु उसके चारों ओर चक्कर नहीं लगाता। सूत्र - ७४८
भगवन् ! क्या इस प्रकार के भी देव हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ और उत्कृष्ट पाँच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! क्या ऐसे देव भी हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक हजार, दो हजार या तीन हजार और उत्कृष्ट पाँच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! क्या ऐसे देव भी हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक लाख, दो लाख या तीन लाख वर्षों में और उत्कृष्ट पाँच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं?
हे भगवन् ! ऐसे कौन-से देव हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक सौ वर्ष, यावत्-पाँच सौ वर्ष में क्षय करते हैं? भगवन् ! ऐसे कौन-से देव हैं, जो यावत् पाँच हजार वर्षों में अनन्त कर्मांशों का क्षय कर देते हैं ? और हे भगवन् ! ऐसे कौन-से देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को यावत् पाँच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं ? गौतम ! वे वाण-व्यन्तर देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को एक-सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं । असुरेन्द्र को छोड़कर शेष सब भवनपति देव अनन्त कर्मांशों को दो सौ वर्षों में, तथा असुरकुमार देव अनन्त कर्मांशों को तीन सौ वर्षों में, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्क देव चार सौ वर्षों में और ज्योतिषेन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य अनन्त कर्मांशों को पाँच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं। सौधर्म और ईशानकल्प के देव अनन्त कर्मांशों को यावत् एक हजार वर्षों में खपा देते हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देव अनन्त कर्माशों को दो हजार वर्षों में खपा देते हैं । इस प्रकार आगे इसी अभिलाप के अनुसारब्रह्मलोक और लान्तककल्प के देव अनन्त कर्मांशों को तीन हजार वर्षों में खपा देते हैं । महाशुक्र और सहस्रार देव अनन्त कर्मांशों को चार हजार वर्षों में, आनतप्राणत, आरण और अच्युतकल्प के देव अनन्त कर्मांशों को पाँच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं । अधस्तन ग्रैवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को एक लाख वर्ष में, मध्यम ग्रैवेयकत्रय के देव अनन्त कर्मांशों को दो लाख वर्षों में, और उपरिम ग्रैवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को तीन लाख वर्षों में क्षय करते हैं । विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित देव अनन्त कर्मांशों को चार लाख वर्षों में क्षय कर देते सर्वार्थसिद्ध देव, अपने अनन्त कर्मांशों को पाँच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं । इसीलिए हे गौतम ! ऐसे देव हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ वर्षों में, यावत् पाँच लाख वर्षों में क्षय करते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१८ - उद्देशक-८ सूत्र - ७४९
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! सम्मुख और दोनों ओर युगमात्र भूमि को देखदेख कर ईर्यापूर्वक गमन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर के नीचे मुर्गी का बच्चा, बतख का बच्चा अथवा कुलिंगच्छाय आकर मर जाएं तो, उक्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! यावत् उस भावितात्मा अनगार को, यावत् ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी नहीं लगती।
भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि पूर्वोक्त भावितात्मा अनगार को यावत् साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती ? गौतम ! सातवें शतक के सप्तम उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए । यावत् अर्थ का निक्षेप करना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर स्वामी बाहर के जनपद में यावत् विहार कर गए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 113