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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक भगवन् ! भ्रमर कितने वर्ण-गन्धादि वाला है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! व्यावहारिक नय से भ्रमर काला है और नैश्चयिक नय से भ्रमर पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला है। भगवन् ! तोते की पाँखें कितने वर्ण वाली हैं ? गौतम ! व्यावहारिक नय से तोते की पाँखें हरे रंग की हैं और नैश्चयिक नय से पाँच वर्ण वाली इत्यादि पूर्ववत् ।
इसी प्रकार इसी अभिलाप द्वारा, मजीठ लाल है; हल्दी पीले है; शंख शुक्ल है, कुष्ठ-पटवास सुरभिगन्धवाला है, मृतकशरीर दुर्गन्धित है, नीम कड़वा है, तूंठ तीखी है, कपित्थ कसैला है, इमली खट्टी है; खांड मधुर है; वज्र कर्कश है, नवनीत मृदु है, लोहे भारी है; उलुकपत्र हल्का है, हिम ठंडा है, अग्निकाय उष्ण है, तेल स्निग्ध है । किन्तु नैश्चयिक नय से इन सबमें पाँच वर्ण, दो गन्ध पाँच रस, आठ स्पर्श हैं। भगवन ! राख कितने वर्णवाली है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम! व्यावहारिकनय से राख रूक्ष स्पर्शवाली, नैश्चयिकनय से राख पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस, आठ स्पर्शवाली है सूत्र-७४१
भगवन् ! परमाणुपुद्गल कितने वर्ण वाला यावत् कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम ! वह एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा है। भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्ण आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न गौतम ! वह कदाचित् एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण, कदाचित् एक गन्ध या दो गन्ध, कदाचित् एक रस, दो रस, कदाचित् दो स्पर्श, तीन स्पर्श और कदाचित् चार स्पर्श वाला कहा गया है । इसी प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष बात यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण और कदाचित् तीन वर्ण वाला होता है। इसी प्रकार रस के विषय में भी; यावत् तीन रस वाला होता है । इसी प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् चार वर्ण वाला होता है । इसी प्रकार रस के विषय में है। शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् पाँच वर्ण वाला होता है । इसी प्रकार रस के विषय में है, गन्ध और स्पर्श के विषय में भी पूर्ववत् । पंचप्रदेशी स्कन्ध के समान यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक कहना।
भगवन् ! सूक्ष्मपरिमाण वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । पंचप्रदेशी स्कन्ध के अनुसार समग्र कथन करना चाहिए । भगवन् ! बादर परिणाम वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण, गन्ध आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् पाँच वर्ण वाला, कदाचित् एक गन्ध या दो गन्ध वाला; कदाचित् एक रस यावत् पाँच रस वाला, तथा चार स्पर्श यावत् कदाचित् आठ स्पर्श वाला होता है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-१८ - उद्देशक-७ सूत्र-७४२
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं और जब केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं तो वे कदाचित् दो प्रकार की भाषाएं बोलते हैं मृषाभाषा और सत्यामृषा भाषा । तो हे भगवन् ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिकों ने यावत् जो इस प्रकार कहा है, वह उन्होंने मिथ्या कहा है । हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ । केवली न तो कदापि यक्षाविष्ट होते हैं, और न ही कभी मृषा और सत्यामृषा इन दो भाषाओं को बोलते हैं। केवली जब भी बोलते हैं, तो असावद्य और दूसरों का उपघात न करने वाली, ऐसी दो भाषाएं बोलते हैं। -सत्याभाषा या व्यवहार भाषा । सूत्र-७४३
भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! तीन प्रकार की । यथा-कर्मोपधि, शरीरोपधि और बाह्यभाण्डमात्रोपकरणउपधि । भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार की उपधि होती है ? गौतम ! दो प्रकार की, कर्मोपधि और शरीरोपधि । एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक शेष सभी जीवों के तीन प्रकार की उपधि होती है। एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार की उपधि होती है यथा-कर्मोपधि और शरीरोपधि । भगवन् ! (प्रकारान्तर से) उपधि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! तीन प्रकार की यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र । इसी प्रकार नैरयिकों के भी तीन
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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