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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार किया । फिर उन स्थविर मुनियों ने अतिमुक्तक कुमार श्रमण को अग्लानभाव से स्वीकार किया और यावत् वे उसकी वैयावृत्य करने लगे। सूत्र - २२९
उस काल और उस समय में महाशुक्र कल्प से महासामान नामक महाविमान (विमान) से दो महर्द्धिक यावत् महानुभाग देव श्रमण भगवान महावीर के पास प्रगट हुए।
तत्पश्चात् उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करके उन्होंने मन से ही इस प्रकार का ऐसा प्रश्न पूछा-भगवन् ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ? तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने उन देवों को भी मन से ही इस प्रकार का उत्तर दिया-हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे । इस प्रकार उन देवों द्वारा मन से पूछे गए प्रश्न का उत्तर श्रमण भगवान महावीर ने भी मन
कार दिया, जिससे वे देव हर्षित, सन्तुष्ट (यावत) हृदयवाले एवं प्रफुल्लित हए । फिर उन्होंने भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया । मन से उनकी शुश्रूषा और नमस्कार करते हुए यावत् पर्युपासना करने लगे।
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार यावत् न अतिदूर और न ही अतिनिकट उत्कुटुक आसन से बैठे हुए यावत् पर्युपासना करते हुए उनकी सेवा में रहते थे । तत्पश्चात् ध्यानान्तरिका में प्रवृत्त होते हुए भगवान गौतम के मन में इस प्रकार का इस रूप का अध्यवसाय उत्पन्न हआ-निश्चय ही महर्द्धिक यावत् महानुभाग दो देव, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निकट प्रकट हए; किन्तु मैं तो उन देवों को नहीं जानता कि वे कौन-से कल्प से या स्वर्ग से, कौन-से विमान से और किस प्रयोजन से शीघ्र यहाँ आए हैं ? अतः मैं भगवान महावीर स्वामी के पास जाऊं और वन्दना-नमस्कार करूँ; यावत् पर्युपासना करूँ, और ऐसा करके मैं इन और इस प्रकार के उन प्रश्नो को पूरृ । यों श्री गौतम स्वामी ने विचार किया और अपने स्थान से उठे। फिर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए यावत् उनकी पर्युपासना करने लगे । इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने गौतम से इस प्रकार कहा-गौतम! एक ध्यान की समाप्त करके दूसरा ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व तुम्हारे मन में इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि मैं देवों सम्बन्धी तथ्य जानने के लिए श्रमण भगवान महावीर स्वामी की सेवा में जाकर उन्हें वन्दन-नमस्कार करूँ, यावत् उनकी पर्युपासना करूँ, उसके पश्चात् पूर्वोक्त प्रश्न पूछू, यावत् इसी कारण से जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम मेरे पास शीघ्र आए हो । हाँ, भगवन् ! यह बात ऐसी ही है। (भगवान महावीर स्वामी ने कहा-) गौतम ! तुम जाओ । वे देव ही इस प्रकार की जो भी बातें हुई थी, तुम्हें बताएंगे। तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर द्वारा इस प्रकार की आज्ञा मिलने पर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और फिर जिस तरफ वे देव थे, उसी ओर जाने का संकल्प किया।
इधर उन देवों ने भगवान गौतम स्वामी को अपनी ओर आते देखा तो वे अत्यन्त हर्षित हुए यावत् उनका हृदय प्रफुल्लित हो गया; वे शीघ्र ही खड़े हुए, फुर्ती से उनके सामने गए और जहाँ गौतम स्वामी थे, वहाँ उनके पास पहुँचे । फिर उन्हें यावत् वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-भगवन् ! महाशुक्रकल्प में, महासामान नामक महाविमान से हम दोनों महर्द्धिक यावत् महानुभाग देव यहाँ आए हैं।
हमने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और मन से ही इस प्रकार की ये बातें पूछी कि भगवन् ! आप देवानुप्रिय के कितने शिष्य सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ? तब हमारे द्वारा मन से ही श्रमण भगवान महावीर स्वामी से पूछे जाने पर उन्होंने हमें मन से ही इस प्रकार का यह उत्तर दिया-हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । इस प्रकार मन से पूछे गए प्रश्न का उत्तर श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा मन से ही प्राप्त करके हम अत्यन्त हृष्ट और सन्तुष्ट हुए यावत् हमारा हृदय उनके प्रति खिंच गया । अतएव हम श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार करके यावत् उनकी पर्युपासना कर रहे हैं। यों कहकर उन देवों ने भगवान गौतम स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और वे दोनों देव जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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