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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-1 '
शतक / शतकशतक / उद्देशक / सूत्रांक आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए परिणत होते हैं, २. किन्तु नहीं आहार किये हुए (अनाहारित) पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा भविष्य में जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किये जाएंगे, वे परिणत होंगे, ३. अनाहारित पुद् गल परिणत नहीं हुए, तथा जिन पुद्गलों का आहार नहीं किया जाएगा, वे भी परिणत नहीं होंगे ४. । सूत्र १४, १५
हे भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहारित पुद्गल चय को प्राप्त हुए ? हे गौतम! जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए उसी प्रकार उपचय को प्राप्त हुए उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए।
परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक-एक पद में चार प्रकार के पुद्गल (प्रश्नोत्तर के विषय) होते हैं ।
सूत्र - १६
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हे भगवन्! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं? गौतम कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं। अणु (सूक्ष्म) और बादर ।
भगवन् ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल चय किये जाते हैं ? गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा वे दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं, वे इस प्रकार हैं- अणु और बादर २. इसी प्रकार उपचय समझना।
भगवन्! नारक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? गौतम कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं । वह इस प्रकार है- अणु और बादर । शेष पद भी इसी प्रकार कहने चाहिए:वेदते हैं, निर्जरा करते हैं, अपवर्त्तन को प्राप्त हुए, अपवर्त्तन को प्राप्त हो रहे हैं, अपवर्त्तन को प्राप्त करेंगे, संक्रमण किया, संक्रमण करते हैं, संक्रमण करेंगे, निधत्त हुए, निधत्त होते हैं, निधत्त होंगे, निकाचित हुए, निकाचित होते हैं, निकाचित होंगे, इन सब पदों में भी कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा (अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए) । सूत्र - १७
भेदे गए, चय को प्राप्त हुए उपचय को प्राप्त हुए, उदीर्ण हुए, वेद गए और निर्जीण हुए (इसी प्रकार) अपवर्त्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन (इन पिछले चार) पदोंमें भी तीनों प्रकार काल कहना चाहिए। हे भगवन्! नारक जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) काल में ग्रहण करते हैं ? अथवा अनागत (भविष्य) काल में ग्रहण करते हैं ? गौतम! अतीत का में ग्रहण नहीं करते; वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं; भविष्यकाल में ग्रहण नहीं करते ।
हे भगवन् नारक जीव तेजस और कार्मणरूप में ग्रहण किये हुए जिन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, सो क्या अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? या वर्तमान काल में ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? अथवा जिनका उदयकाल आगे आने वाला है, ऐसे पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? हे गौतम वे अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, परन्तु वर्तमान काल में ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते, तथा आगे ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की भी उदीरणा नहीं करते। इसी प्रकार अतीत काल में गृहीत पुद्गलों को वेदते हैं, और उनकी निर्जरा करते हैं ।
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सूत्र - १८
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भगवन्! क्या नारक जीवप्रदेशों से चलित कर्म को बाँधते हैं, या अचलित कर्म को बाँधते हैं ? गौतम (वे) चलित कर्म को नहीं बाँधते, (किन्तु) अचलित कर्म को बाँधते हैं । इसी प्रकार अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं, अचलित कर्म का ही वेदन करते हैं, अपवर्त्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं, निधत्ति करते हैं और निकाचन करते हैं। इन सब पदों में अचलित (कर्म) कहना चाहिए, चलित (कर्म) नहीं ।
भगवन्! क्या नारक जीवप्रदेश से चलित कर्म की निर्जरा करते हैं अथवा अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं ? गौतम ! (d) चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती )" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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