________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक घोरगुण सम्पन्न, घोरतपस्वी, घोर ब्रह्मचर्यवासी, शरीर-संस्कार के त्यागी थे। उन्होंने विपुल (व्यापक) तेजोलेश्या को संक्षिप्त (अपने शरीर में अन्तर्लीन) कर ली थी, वे चौदह पूर्वो के ज्ञाता और चतुर्ज्ञानसम्पन्न सर्वाक्षर-सन्निपाती थे। सूत्र-९
तत्पश्चात् जातश्रद्ध (प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले), जातसंशय, जातकुतूहल, संजातश्रद्ध, समुत्पन्न श्रद्धा वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले गौतम अपने स्थान से उठकर खड़े होते हैं।
उत्थानपूर्वक खड़े होकर श्रमण गौतम जहाँ श्रमण भगवान महावीर हैं, उस ओर आते हैं । निकट आकर श्रमण भगवान महावीर को उनके दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके तीन बार प्रदक्षिणा करते हैं । फिर वन्दन-नमस्कार करते हैं । नमस्कार करके वे न तो बहुत पास और न बहुत दूर भगवान के समक्ष विनय से ललाट पर हाथ जोड़े हुए भगवान के वचन सूनना चाहते हुए उन्हें नमन करके व उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-हे भदन्त ! क्या यह निश्चित कहा जा सकता है कि १. जो चल रहा हो, वह चला ?, २. जो उदीरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ?, ३. जो वेदा जा रहा है, वह वेदा गया ?, ४. जो गिर रहा है, वह गिरा ?, ५. जो छेदा जा रहा है, वह छिन्न हआ ?, ६. जो भेदा जा रहा है, वह भिन्न हुआ ?, ७. जो दग्ध हो रहा है, वह दग्ध हुआ ?, ८. जो मर रहा है, वह मरा ?, ९. जो निर्जरित हो रहा है, वह निर्जीर्ण हुआ ?
हाँ, गौतम ! जो चल रहा हो, वह चला, यावत् निर्जरित हो रहा है, वह निर्जीर्ण हुआ। सूत्र-१०
भगवन् ! क्या ये नौ पद, नानाघोष और नाना व्यञ्जनों वाले एकार्थक हैं ? अथवा नाना घोष वाले और नाना व्यञ्जनों वाले भिन्नार्थक पद हैं ?
हे गौतम ! १. जो चल रहा है, वह चला; २. जो उदीरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ; ३. जो वेदा जा रहा है, वह वेदा गया; ४. और जो गिर (नष्ट) हो रहा है, वह गिरा (नष्ट हुआ), ये चारों पद उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक, नानाघोष वाले और नाना-व्यञ्जनों वाले हैं । तथा १. जो छेदा जा रहा है, वह छिन्न हुआ, २. जो भेदा जा रहा है, वह भिन्न हुआ, ३. जो दग्ध हो रहा है, वह दग्ध हुआ; ४. जो मर रहा है, वह मरा; और ५. जो निर्जीर्ण किया जा रहा है, वह निर्जीर्ण हुआ, ये पाँच पद विगतपक्ष की अपेक्षा से नाना अर्थ वाले, नाना-घोष वाले और नाना-व्यञ्जनों वाले हैं। सूत्र - ११
भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही है? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है।
भगवन् ! नारक कितने काल (समय) में श्वास लेते हैं और कितने समय में श्वास छोड़ते हैं कितने काल में उच्छ्वास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं ? (प्रज्ञापना-सूत्रोक्त) उच्छ्वास पद (सातवें पद) के अनुसार समझना चाहिए
भगवन् ! क्या नैरयिक आहारार्थी होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के आहारपद के प्रथम उद्देशक के अनुसार समझ लेना। सूत्र -१२
नारक जीवों की स्थिति, उच्छ्वास तथा आहार-सम्बन्धी कथन करना चाहिए। क्या वे आहार करते हैं? वे समस्त आत्मप्रदेशों से आहार करते हैं? वे कितने भाग का आहार करते हैं या वे सर्व-आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और वे आहारक द्रव्यों को किस रूप में बार-बार परिणमाते हैं ? सूत्र-१३
__ भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए ? आहारित तथा (वर्तमान में) आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं, वे तथा जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किए जाएंगे, वे परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं और आगे भी आहारित नहीं होंगे, वे परिणत हुए ?
हे गौतम ! नारकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए; १. (इसी तरह) आहार किये हुए और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 6