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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक भंग कहने चाहिए।
नारक जीवों में जिन-जिन स्थानों में अस्सी भंग कहे गए हैं, उन-उन स्थानों में मनुष्यों के भी अस्सी भंग कहना । नारक जीवों में जिन-जिन स्थानोंमें २७ भंग कहे गए हैं उनमें मनुष्यों में अभंगक कहना । विशेषता यह है कि मनुष्यों के जघन्य स्थिति में और आहारक शरीर में अस्सी भंग होते हैं, यही नैरयिकों की अपेक्षा मनुष्यों में अधिक हैं।
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का कथन भवनपति देवों के समान समझना । विशेषता यह है कि जो जिसका नानात्व-भिन्नत्व है, यावत् अनुत्तरविमान तक कहना । भगवन् ! यह इसी प्रकार है, ऐसा कहकर यावत् विचरण करते हैं।
शतक-१- उद्देशक-६ सूत्र-६९
भगवन् ! जितने जितने अवकाशान्तर से अर्थात्-जितनी दूरी से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से शीघ्र देखा जाता है, उतनी ही दूरी से क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है ? हाँ, गौतम ! जितनी दूर से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से दीखता है, उतनी ही दूरी से अस्त होता सूर्य भी आँखों से दिखाई देता है।
__ भगवन् ! उदय होता हुआ सूर्य अपने ताप द्वारा जितने क्षेत्र को सब प्रकार से, चारों ओर से सभी दिशाओंविदिशाओं को प्रकाशित करता है. उद्योतित करता है. तपाता है और अत्यन्त तपाता है. क्या उतने है होता हआ सर्य भी अपने ताप द्वारा सभी दिशाओं-विदिशाओं को प्रकाशित करता है. उद्योतित करता है. तपाता है और बहत तपाता है ? हाँ, गौतम ! उदय होता हआ सूर्य जितने क्षेत्र को प्रकाशित करता है, यावत अत्यन्त तपाता है, उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हआ सर्य भी यावत अत्यन्त तपाता है।
भगवन् ! सूर्य जिस क्षेत्र को प्रकाशित करता है, क्या वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता है, या अस्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता है और यावत् उस क्षेत्र को छहों दिशाओं में प्रकाशित करता है। इसी प्रकार उद्योतित करता है, तपाता है और बहुत तपाता है, यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओंमें अत्यन्त तपाता है।
भगवन् ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है, या अस्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है ? गौतम ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है, यावत् छहों दिशाओं में स्पर्श करता है। सूत्र - ७०
भगवन् ! क्या लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है? हाँ, गौतम ! लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है, और अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है। भगवन् ! वह जो स्पर्श करता है, क्या वह स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में स्पृष्ट होता है।
भगवन् ! क्या द्वीप का अन्त समुद्र के अन्त को और समुद्र का अन्त द्वीप के अन्त को स्पर्श करता है ? हाँ, गौतम ! यावत्-छहों दिशाओं में स्पर्श करता है। भगवन् ! क्या इसी प्रकार पानी का किनारा, पोत के किनारे को और पोत का किनारा पानी के किनारे को, क्या छेद का किनारा वस्त्र के किनारे को और वस्त्र का किनारा छेद के किनारे को और क्या छाया का अन्त आतप के अन्त को और आतप का अन्त छाया के अन्त को स्पर्श करता है? हाँ, गौतम! यावत् छहों दिशाओं को स्पर्श करता है। सूत्र-७१
भगवन् ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? भगवन् ! की जाने वाली वह प्राणातिपातक्रिया क्या स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत् व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित चार दिशाओं को और कदाचित पाँच दिशाओं को स्पर्श करती है।
भगवन् ! क्या वह (प्राणातिपात) क्रिया कृत है अथवा अकृत ? गौतम ! वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं । भगवन् ! की जाने वाली वह क्रिया क्या आत्मकृत है, परकृत है, अथवा उभयकृत है ? गौतम ! वह क्रिया आत्म-कृत
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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