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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक अथवा अनेक जीव उदीरक हैं । इसी प्रकार अन्तरय कर्म तक जानना; परन्तु इतना विशेष है कि वेदनीय और आयुष्य कर्म में पूर्वोक्त आठ भंग कहने चाहिए।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव, कृष्णलेश्या वाले होते हैं, नीललेश्या वाले होते हैं, या कापोतलेश्या वाले होते हैं, अथवा तेजोलेश्या वाले होते हैं ? गौतम ! एक जीव कृष्णलेश्या वाला होता है, यावत् एक जीव तेजोलेश्या वाला होता है । अथवा अनेक जीव कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले अथवा तेजोलेश्या वाले होते हैं । अथवा एक कृष्णलेश्या वाला और एक नीललेश्या वाला होता है । इस प्रकार ये द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और चतुःसंयोगी सब मिलाकर ८० भंग होते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, अथवा सम्यग्-मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि भी नहीं, वह मात्र मिथ्यादृष्टि हैं, अथवा वे अनेक भी मिथ्यादृष्टि हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव ज्ञानी हैं, अथवा अज्ञानी हैं ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु वह एक अज्ञानी है अथवा वे अनेक भी अज्ञानी हैं । भगवन् ! वे जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, अथवा काययोगी हैं ? गौतम ! वे मनोयोगी नहीं हैं, न वचनयोगी हैं, किन्तु वह एक हो तो काययोगी हैं और अनेक हों तो भी काययोगी हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव साकारोपयोगी हैं, अथवा अनाकारोपयोगी हैं ? गौतम! वे साकारो-पयोगी भी होते हैं और अनकारोपयोगी भी।
भगवन् ! उन जीवों का शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला है ? गौतम ! उनका (शरीर) पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाला है । जीव स्वयं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-रहित है। भगवन् ! वे जीव उच्छ्वासक हैं, निःश्वासक हैं या उच्छ्वासक-निःश्वासक हैं ? गौतम ! (उनमें से) कोई एक जीव उच्छ वासक है, या कोई एक जीव निःश्वासक है, अथवा कोई एक जीव अनुच्छ्वासक-निश्वासक है, या अनेक जीव उच्छ् वासक हैं, या अनेक जीव निःश्वासक हैं, अथवा अनेक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक हैं अथवा एक उच्छ्वासक है
और एक निःश्वासक है, इत्यादि । अथवा एक उच्छ्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक हैं; इत्यादि । अथवा एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है, इत्यादि । अथवा एक उच्छ्वासक एक निःश्वासक और एक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है इत्यादि आठ भंग होते हैं । ये सब मिलकर २६ भंग होते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारक हैं या अनाहारक हैं ? गौतम! कोई एक जीव आहारक है, अथवा कोई एक जीव अनाहारक है; इत्यादि आठ भंग कहने चाहिए।
भगवन् ! क्या वे उत्पल के जीव विरत हैं, अविरत हैं या विरताविरत हैं ? गौतम ! वे उत्पल-जीव न तो सर्वविरत हैं और न विरताविरत हैं, किन्तु एक जीव अविरत है अथवा अनेक जीव भी अविरत हैं। भगवन् ! क्या वे उत्पल के जीव सक्रिय हैं या अक्रिय हैं ? गौतम ! वे अक्रिय नहीं हैं, किन्तु एक जीव भी सक्रिय है और अनेक जीव भी सक्रिय हैं। भगवन् ! वे उत्पल के जीव सप्तविध बन्धक हैं या अष्टविध बन्धक हैं ? गौतम ! वे जीव सप्तविध-बन्धक हैं या अष्टविधबन्धक हैं । यहाँ पूर्वोक्त आठ भंग कहना।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, या भयसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, अथवा मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले हैं या परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले हैं ? गौतम ! वे आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, इत्यादि (लेश्याद्वार के समान) अस्सी भंग कहना । भगवन् ! वे उत्पल के जीव क्रोधकषायी हैं, मानकषायी हैं, मायाकषायी हैं अथवा लोभकषायी हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त ८० भंग कहना चाहिए।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेदी हैं, पुरुषवेदी हैं या नपुंसकवेदी हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेद वाले नहीं, पुरुष वेद वाले भी नहीं, परन्तु एक जीव भी नपुंसकवेदी हैं और अनेक जीव भी नपुंसकवेदी हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेद के बन्धक हैं, पुरुषवेद के बन्धक हैं या नपुंसकवेद के बन्धक हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेद के बन्धक हैं, या पुरुषवेद के बन्धक हैं अथवा नपुंसकवेद के बन्धक हैं । यहाँ उच्छ्वासद्वार के समान २६ भंग कहने चाहिए।
भगवन् ! वे उत्पल के जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ? गौतम ! वे संज्ञी नहीं, किन्तु एक जीव भी असंज्ञी हैं और अनेक जीव भी असंज्ञी हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव सेन्द्रिय हैं या अनिन्द्रिय ? गौतम ! वे अनिन्द्रिय नहीं, किन्तु एक जीव सेन्द्रिय हैं और अनेक जीव भी सेन्द्रिय हैं। भगवन ! वह उत्पल का जीव उत्पल के रूप में कितने काल तक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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