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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक
शतक-११ सूत्र -४९४
ग्यारहवें शतक के बारह उद्देशक इस प्रकार हैं-(१) उत्पल, (२) शालूक, (३) पलाश, (४) कुम्भी , (५) नाडीक, (६) पद्म, (७) कर्णिका, (८) नलिन, (९) शिवराजर्षि, (१०) लोक, (११) काल और (१२) आलभिक।
शतक-११ - उद्देशक-१ सूत्र-४९५-४९७
१. उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ४. ऊंचाई (अवगाहना), ५. बन्धक, ६. वेद, ७. उदय, ८. उदीरणा, ९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान । तथा-१२. योग, १३. उपयोग, १४. वर्ण-रसादि, १५. उच्छवास, १६. आहार, १७. विरति, १८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध । २४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति, ३०. समुद्घात, ३१. च्यवन और ३२. सभी जीवों का मूलादि में उपपात । सूत्र -४९८
उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था । वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! एक पत्र वाला उत्पल एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं । उसके उपरांत जब उस उत्पल में दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं, तब वह एक जीव वाला नहीं रहकर अनेक जीव वाला बन जाता है । भगवन् ! उत्पल में वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, या तिर्यञ्चयोनिकों से अथवा मनुष्यों से या देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जीव नारकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, वे तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी और देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । “व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार-वनस्पतिकायिक जीवोंमें यावत् ईशान-देवलोक तक के जीवों का उपपात होता है।
भगवन् ! उत्पलपत्र में वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कृष्टतः संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव एक-एक समय में एक-एक नीकाले जाएं ॥ कितने काल में पूरे नीकाले जा सकते हैं ? गौतम ! एक-एक समय में एक-एक नीकाले जाएं ओर उन्हें असंख्य उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल तक नीकाल जाए तो भी वे पूरे नीकाले नहीं जा सकते।
भगवन् ! उन (उत्पल के) जीवों की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन होती है।
भगवन् ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धक हैं या अबन्धक हैं ? गौतम ! वे ज्ञानावरणीय कर्म के अबन्धक नहीं; किन्तु एक जीव बन्धक हैं, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं । इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर अन्तराय कर्म तक समझ लेना । विशेषतः (वे जीव) आयुष्य कर्म के बन्धक हैं, या अबन्धक ? यह प्रश्न है । गौतम ! उत्पल का एक जीव बन्धक है, अथवा एक जीव अबन्धक है, अथवा अनेक जीव बन्धक हैं, या अनेक जीव अबन्धक हैं, अथवा एक जीव बन्धक है, और एक अबन्धक है, अथवा एक जीव बन्धक और अनेक जीव अबन्धक हैं, या अनेक जीव बन्धक हैं और एक जीव अबन्धक है एवं अथवा अनेक जीव बन्धक हैं और अनेक जीव अबन्धक हैं। इस प्रकारये आठ भंग होते हैं।
भगवन ! वे (उत्पल के) जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? गौतम ! वे जीव अवेदक नहीं, किन्तु या तो एक जीव वेदक है और अनेक जीव वेदक हैं । इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक जानना । भगवन् ! वे जीव सातावेदक हैं, या असातावेदक हैं ? गौतम ! एक जीव सातावेदक है, अथवा एक असातावेदक है, इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय वाले हैं या अनुदय वाले हैं ? गौतम ! वे जीव अनुदय वाले नहीं हैं, किन्तु एक जीव उदय वाला है, अथवा वे उदय वाले हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म तक समझ लेना । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक हैं या अनुदीरक हैं ? गौतम ! वे अनुदीरक नहीं; किन्तु एक जीव उदीरक है,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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