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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक रहता है ? गौतम! वह जघन्यतः अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्टतः असंख्यात काल तक रहता है।
भगवन् ! वह उत्पल का जीव, पृथ्वीकाय में जाए और पुनः उत्पल का जीव बने, इस प्रकार उसका कितना काल व्यतीत हो जाता है ? कितने काल तक गमनागमन करता रहता है ? गौतम! भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव करता है, कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल रहता है, इतने काल तक गतिआगति करता है। भगवन् ! वह उत्पल का जीव, अप्काय के रूप में उत्पन्न होकर पुनः उत्पल में आए तो इसमें कितना काल व्यतीत हो जाता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! पृथ्वीकाय के समान भवादेश से और कालादेश से कहना । इसी प्रकार पृथ्वीकाय के गमनागमन अनुसार वायुकाय जीव तक कहना । भगवन् ! वह उत्पल का जीव, वनस्पति के जीव में जाए और वह पुनः उत्पल के जीव में आए, इस प्रकार कितने काल तक रहता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से वह जघन्य दो भव करता है और उत्कृष्ट अनन्त भव करता है । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट अनन्त काल तक ।
भगवन् ! वह उत्पल का जीव, द्वीन्द्रियजीव पर्याय में जाकर पुनः उत्पल जीव में आए तो उसका कितना काल व्यतीत होता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! वह जीव भवादेश से जघन्य दो भव करता है, उत्कृष्ट संख्यात भव करता है । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात काल व्यतीत हो जाता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव को भी जानना । भगवन् ! उत्पल का वह जीव, पंचेन्द्रियतिर्यंच-योनिक जीव में जाकर पुनः उत्पल के जीव में आए तो उसका कितना काल व्यतीत होता है ? वह कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव करता है और उत्कृष्ट आठ भव । कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहर्त तक और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व काल । इसी प्रकार मनुष्ययोनि के विषय में भी जानना । यावत् इतने काल उत्पल का वह जीव गमनागमन करता है । भगवन् ! वे उत्पल के जीव किस पदार्थ का आहार करते हैं ? गौतम ! वे जीव द्रव्यतः अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं, इत्यादि, प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें पद के आहार-उद्देशक में वनस्पतिकायिक जीवों के आहार के विषय में कहा है कि वे सर्वात्मना आहार करते हैं, यहाँ तक-सब कहना । विशेष यह है कि वे नियमतः छह दिशा से आहार करते हैं । शेष पूर्ववत् ।
भगवन् ! उन उत्पल के जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है । भगवन् ! उन जीवों में कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! तीन समुद्घात, यथा-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात । भगवन् ! वे जीव मारणान्तिकसमुद्घात द्वारा समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर ? गौतम ! (वे) समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् या देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिक पद के उद्वर्त्तना-प्रकरण में वनस्पति-कायिकों के वर्णन के अनुसार कहना।
भगवन् ! सभी प्राण, सभी भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व; क्या उत्पल के मूलरूप में, उत्पल के कन्दरूप में, उत्पल के नालरूप में, उत्पल के पत्ररूप में, उत्पल के केसररूप में, उत्पल की कर्णिका के रूप में तथा उत्पल के थिभुग के रूप में इससे पहले उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार (पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न हुए हैं)। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! यह इसी प्रकार है।'
शतक-११ - उद्देशक-२ सूत्र-४९९
भगवन् ! क्या एक पत्ते वाला शालूक एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला है ? गौतम ! वह एक जीव वाला है; यहाँ से लेकर यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं; तक उत्पल-उद्देशक की सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष इतना ही है कि शालूक के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथ-क्त्व की है। शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए। भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! यह इसी प्रकार है!'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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