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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक आधारभूत है विश्वासपात्र है, तू सम्मत, अनुमत और बहुमत है । तू आभूषणो के पिटारे के समान है, रत्नस्वरूप है, रत्नतूल्य है, जीवन या जीवितोत्सव के समान है, हृदय को आनन्द देने वाला है; उदूम्बर के फूल के समान तेरा नामश्रवण भी दुर्लभ है, तो तेरा दर्शन दुर्लभ हो, इसमें कहना ही क्या ! इसलिए हे पुत्र ! हम तेरा क्षण भर का वियोग भी नही चाहते । इसलिए जब तक हम जीवित रहे, तब तक तू घर में ही रह । उसके पश्चात् जब हम कालधर्म को प्राप्त हो जाएँ, तब निरपेक्ष होकर तू गृहवास का त्याग करके श्रमण भगवान् महावीर के पास मुण्डित होकर अनगारधर्म में प्रव्रजित होना।
तब क्षत्रियकुमार जमालि ने अपने माता-पिता से कहा-अभी जो आपने कहा कि-हे पुत्र ! तुम हमारे इकलौते पुत्र हो, इष्ट कान्त आदि हो, यावत् हमारे कालगत होने पर प्रव्रजित होना, इत्यादि; माताजी ! पिताजी ! यों तो यह मनुष्य जीवन जन्म, जरा, मत्य, रोग तथा शारीरिक और मानसिक अनेक दुःखो की वेदना से और सैकडो कष्टो एवं उपद्रवो से ग्रस्त है । अध्रुव; है, अनियत है, अशाश्वत है, सन्ध्याकालीन बादलों के रंग-सदृश, क्षणिक है, जल-बुबुद के समान है, कुश की नोकर पर रहे हुए जलबिन्दु के समान है, स्वप्तदर्शन के तुल्य है, विद्युत-लता की चमक के समान चंचल और अनित्य है। सड़ने, पड़ने, गलने और विध्वंस होने के स्वभाववाला है। पहले या पीछे इसे अवश्य ही छोडना पडेगा । अतः हे माता-पिता ! यह कौन जानता है कि कि हममें से कौन पहले जाएगा और कौन पीछे जाएगा? इसलिए मैं चाहता हूं कि आपकी अनुज्ञा मिल जाए तो मैं श्रमण भगवान महावीर के पास मुंडित होकर यावत् प्रव्रज्या अंगीकार कर लूं ।
यह बात सुन कर क्षत्रियकुमार जमालि से उसके माता-पिता ने कहा-हे पुत्र ! तुम्हारा यह शरीर विशिष्ट रूप, लक्षणों, व्यंजनो एवं गुणो से युक्त है, उत्तम बल, वीर्य और सत्त्व से सम्पन्न है, विज्ञान में विचक्षण है, सौभाग्य-गुण से उन्नत है, कुलीन है, महान् समर्थ है, विविध व्याधियों और रोगो से रहित है, निरुपहत, उदात्त, मनोहर और पांचो इन्द्रियो की पटुता से युक्त है तथा प्रथम यौवन अवस्था में है, इत्यादि अनेक उत्तम गुणो से युक्त है। हे पुत्र ! जब तक तेरे शरीर में रूप, सौभाग्य और यौवन आदि उत्तम गुण है, तब तक तू इनका अनुभव कर । पश्चात् हमारे कालधर्म प्राप्त होने पर जब तेरी उम्र परिपक्क हो जाए और कुलवंश की वृद्धि का कार्य हो जाए, तब निरपेक्ष हो कर श्रमण भगवान् महावीर के पास मुण्डित हो कर अगारवास छोड़ कर अनगारधर्म में प्रव्रजित होना । तब क्षत्रियकुमार जमालि ने अपने माता-पिता से कहा-हे माता-पिता ! आपने मुझे जो यह कहा कि पुत्र ! तेरा यह शरीर उत्तम रूप आदि गुणों से युक्त है, इत्यादि , यावत् हमारे कालगत होने पर तु प्रव्रजित होना । (किन्तु) यह मानव-शरीर दुःखो का घर है, अनेक प्रकार की सैकडो व्याधिओ का निकेतन हे, अस्थि रुप काष्ठ पर खडा हआ है, नाडियो और स्नायुओ के जाल से वेष्टित है, मिट्टी के बर्तन के समान दुर्बल है । अशुचि के संक्लिष्ट है, इसको टिकाये रखने के लिए सदैव इसकी सम्भाल रखनी पड़ती है, यह सड़े हुए शव के समान और जीर्ण घर के समान है, सड़ना, पड़ना और नष्ट होना, इसका स्वभाव है । इस शरीर को पहले या पीछे अवश्य छोड़ना पडेगा; तब कौन जानता है कि पहले कौन जाएगा और पीछे कानै ? इत्यादि वर्णन पूर्ववत् यावत्-इसलिए मैं चाहता हूं कि आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मै प्रव्रज्या ग्रहण कर लू । तब क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने कहा-पुत्र ! ये तेरी गुणवल्लभा, उत्तम, तुझमे नित्य भावानुरक्त, सर्वांगसुन्दरी आठ पत्नियाँ है, जो विशाल कुल में उत्पन्न नवयौवनाएँ है, कलाकुशल है, सदैव लालित और सुखभोग के योग्य है । ये मार्दवगुण से युक्त, निपुण, विनय-व्यवहार में कुशल एवं विचक्षण है । ये मंजुल, परिमिति और मधुर भाषिणी है । ये हास्य, विप्रेक्षित, गति, विलास और चेष्टाओं मे विशारद है । निर्दोष कुल और शील से सुशोभित है, विशुद्ध कुलरूप वंशतन्तु की वृद्धि करने में समर्थ एवं पूर्णयौवन वाली है । ये मनोनुकूल एवं हृदय को इष्ट है । अतः हे पुत्र ! तू इनके साथ मनुष्यसम्बन्धी विपुल कामभोगो का उपभोग कर, बाद में जब तू भुक्तभोगी हो जाए और विषयविकारो मे तेरी उत्सुकता समाप्त हो जाए, तब हमारे कालधर्म को प्राप्त हो जाने पर यावत् तू प्रव्रजित हो जाना।
माता-पिता के पूर्वोक्त कथन के उत्तर में जमालि क्षत्रियकुमार ने अपने माता-पिता से कहा-तथीप आपने जो यह कहा कि विशाल कुल में उत्पन्न तेरी ये आठ पत्नियाँ हे, यावत् भुक्तभोग और वृद्ध होने पर तथा हमारे कालधर्म
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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