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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक स्पर्श करता हआ पहले, तीसरे, सातवें और नौवें विकल्प से स्पर्श करता है । द्विप्रदेशीस्कन्ध, त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हआ आदिम तीन तथा अन्तिम तीन विकल्पों से स्पर्श करता है । इसमें बीच के तीन विकल्पों को छोड़ देना।
द्विप्रदेशी स्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श के आलापक समान हैं, द्विप्रदेशीस्कन्ध द्वारा चतुष्प्रदेशीस्कन्ध, यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श का आलापक कहना।
भगवन् ! अब त्रिप्रदेशीस्कन्ध परमाणुपुद्गल को तीसरे, छठे और नौवें विकल्प से; स्पर्श करता है । त्रिप्रदेशी स्कन्ध, द्विप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता हुआ पहले, तीसरे, चौथे, छठे, सातवें और नौवें विकल्प से स्पर्श करता है। त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करता हुआ त्रिप्रदेशीस्कन्ध पूर्वोक्त सभी स्थानों से स्पर्श करता है । त्रिप्रदेशी-स्कन्ध द्वारा त्रिप्रदेशीस्कन्ध को स्पर्श करने के समान त्रिप्रदेशीस्कन्ध द्वारा चतष्प्रदेशी स्कन्ध यावत अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करने के सम्बन्ध में कहना चाहिए। जिस प्रकार त्रिप्रदेशीस्कन्ध के द्वारा स्पर्श के स्कन्ध में कहा गया है, वैसे ही यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्वारा परमाणुपदगल से लेकर अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक को स्पर्श करने के सम्बन्ध में कहना। सूत्र - २५७
भगवन् ! परमाणुपुदगल काल की अपेक्षा कब तक रहता है? गौतम ! परमाणुपुदगल (परमाणुपुदगल के रूप में) जघन्य एक समय तक रहता है, और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक कहना चाहिए।
भगवन् ! एक आकाश-प्रदेशावगाढ़ पुद्गल उस (स्व) स्थान में या अन्य स्थान में काल की अपेक्षा से कब तक सकम्प रहता है ? गौतम ! (एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक सकम्प रहता है । इसी तरह यावत् असंख्येय प्रदेशावगाढ़ तक कहना चाहिए।
भगवन् ! एक आकाशप्रदेश में अवगाढ़ पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक निष्कम्प (निरेज) रहता है ? गौतम ! (एक-प्रदेशावगाढ़ पुद्गल) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट असंख्येय काल तक निष्कम्प रहता है । इसी प्रकार यावत् असंख्येय प्रदेशावगाढ़ तक कहना।
भगवन् ! एकगुण काला पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक (एकगुण काला) रहता है ? गौतम ! जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल तक (एकगुण काला पुद्गल रहता है। इसी प्रकार यावत् अनन्तगुण काले पुद्गल का कथन करना चाहिए।
इसी प्रकार (एक गुण) वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल के विषय में यावत् अनन्तगुण रूक्ष पुद्गल तक पूर्वोक्त प्रकार से काल की अपेक्षा से कथन करना चाहिए । इसी प्रकार सूक्ष्म-परिणत पुद्गल और इसी प्रकार बादरपरिणत पुद्गल के सम्बन्ध में कहना।
भगवन् ! शब्दपरिणत पुद्गल काल की अपेक्षा कब तक (शब्दपरिणत) रहता है ? गौतम ! जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग तक । एकगुण काले पुद्गल के समान अशब्दपरिणत पुद्गल कहना।
भगवन् ! परमाणु-पुद्गल का काल की अपेक्षा से कितना लम्बा अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्येय काल का अन्तर होता है।
भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध का काल की अपेक्षा से कितना लम्बा अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल का अन्तर होता है ? इसी तरह (त्रिप्रदेशिकस्कन्ध से लेकर) यावत् अनन्तप्रदेशिकस्कन्ध तक कहना चाहिए।
भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ़ सकम्प पुद्गल का अन्तर कितने काल का होता है ? हे गौतम ! जघन्यतः एक समय का, और उत्कृष्टतः असंख्येयकाल का अन्तर होता है । इसी तरह यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ़ तक का अन्तर कहना चाहिए।
भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ़ निष्कम्प पुद्गल का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्यतः
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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