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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक असुरायु का बंध चार कारणों से होता है । यथा-क्रोधी स्वभाव से, अतिकलह करने से, आहार में आसक्ति रखते हुए तप करने से, निमित्त ज्ञान द्वारा आजीविकोपार्जन करने से। अभियोगायु का बंध चार कारणों से होता है । यथा-अपने तप जप की महीमा अपने-मुँह करने से । दूसरों की निन्दा करने से । ज्वरादि के उपशमन हेतु अभिमन्त्रित राख देने से । अनिष्टकी शान्ति के लिए मंत्रोच्चार करते रहने से संमोहायु बांधने के चार कारण हैं । यथा-उन्मार्ग का उपदेश देने से, सन्मार्ग में अन्तराय देने से, कामभोगों की तीव्र अभिलाषा से । अतिलोभ करके नियाणा करने से। देव किल्बिष आयु बांधने के चार कारण हैं । यथा-अरिहंतों की निन्दा करने से । अरिहंत कथित धर्म की निन्दा करने से । आचार्य-उपाध्याय की निन्दा करने से । चतुर्विध संघ की निन्दा करने से। सूत्र - ३८२ प्रव्रज्या चार प्रकार की है। यथा-इहलोक के सुख के लिए दीक्षा लेना । परलोक के सुख के लिए दीक्षा लेना इहलोक और परलोक के लिए दीक्षा लेना । किसी प्रकार की कामना न रखते हुए दीक्षा लेना । प्रव्रज्या चार प्रकार की है। यथा-शिष्यादि की कामना से दीक्षा लेना । पूर्व दीक्षित स्वजनों के मोह से दीक्षा लेना । उक्त दोनों कारणों से दीक्षा लेना । निष्काम भाव से दीक्षा लेना। प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-सद्गुरुओं की सेवा के लिए दीक्षा लेना । किसी के कहने से दीक्षा लेना। "तू दीक्षा लेगा तो मैं भी दीक्षा लूँगा इस प्रकार वचनबद्ध होकर दीक्षा लेना । किसी वियोग से व्यथित होकर दीक्षा लेना । प्रव्रज्या चार प्रकार की है । किसी को उत्पीड़ित करके दीक्षा देना, किसी को अन्यत्र ले जाकर दीक्षा देना, किसी को ऋणमुक्त करके दीक्षा देना, किसी को भोजन आदि का लालच दिखाकर दीक्षा देना। प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-नटखादिता-नट की तरह वैराग्य रहित धर्म कथा करके आहारादि प्राप्त करना । सुभटखादिता-सुभट की तरह बल दिखाकर आहारादि प्राप्त करना । सिंहखादिता-सिंह की तरह दूसरे की अवज्ञा करके आहारादि प्राप्त करना । शृंगालखादिता-शृंगाल की तरह दीनता प्रदर्शित कर आहारादि प्राप्त करना। कृषि चार प्रकार की है । यथा-एक कृषि में धान्य एक बार बोया जाता है । एक कृषि में धान्य आदि दो-तीन बार बोया जाता है । एक कृषि में एक बार निनाण की जाती है । एक कृषि में बार-बार निनाण की जाती है। इसी प्रकार प्रव्रज्या चार प्रकार की है । एक प्रव्रज्या में एक बार सामायिकचारित्र धारण किया जाता है । एक प्रव्रज्या में बार-बार सामायिकचारित्र धारण किया जाता है। एक प्रव्रज्या में एक बार अतिचारों की आलोयणा की जाती है। एक प्रव्रज्या में बार-बार अतिचारों की आलोयणा की जाती है। प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-खलिहान में शुद्ध की हुई धान्यराशि जैसी अतिचार रहित प्रव्रज्या । खलिहान में उफणे हुए धान्य जैसी अल्प अतिचार वाली प्रव्रज्या । गायटा किये हुए धान्य जैसी अनेक अतिचार वाली प्रव्रज्या । खेत में से लाकर खलिहान में रखे हुए धान्य जैसी प्रचुर अतिचार वाली प्रव्रज्या। सूत्र-३८३ संज्ञा चार प्रकार की है । आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा । चार कारणों से आहार संज्ञा होती है । यथा-पेट खाली होने से । क्षुधावेदनीय कर्म के उदय से । खाद्य पदार्थों की चर्चा सूनने से । निरन्तर भोजन की ईच्छा करने से। चार कारणों से भय संज्ञा होती है । यथा-अल्पशक्ति होने से । भयवेदनीय कर्म के उदय से । भयावनी कहानीयाँ सूनने से । भयानक प्रसंगों के स्मरण से । चार कारणों से मैथुन संज्ञा होती है । यथा-रक्त और माँस के उपचय से । मोहनीय कर्म के उदय से । काम कथा सूनने से । भुक्त भोगों के स्मरण से। चार कारणों से परिग्रह संज्ञा होती है । यथा-परिग्रह होने से । लोभवेदनीय कर्म के उदय से । हिरण्य सुवर्ण आदि को देखने से । धन कंचन के स्मरण से। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 81
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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