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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३७८ पक्षी चार प्रकार के हैं । यथा-एक पक्षी घोंसले से बाहर नीकलता है किन्तु बाहर फिरने व उड़ने में समर्थ नहीं है । एक पक्षी फिरने में समर्थ है किन्तु घोंसले से बाहर नहीं नीकलता है । एक पक्षी घोंसले से बाहर भी नीकलता है और फिरने में समर्थ भी है । एक पक्षी न घोंसले से बाहर नीकलता है और न फिरने में समर्थ होता है। इसी प्रकार भिक्षु (श्रमण) भी चार प्रकार के हैं । यथा-एक श्रमण भिक्षार्थ उपाश्रय से बाहर जाता है किन्तु फिरता नहीं है । एक श्रमण फिरने में समर्थ है किन्तु भिक्षा के लिए नहीं जाता है । एक श्रमण भिक्षार्थ जाता है और फिरता भी है । एक श्रमण भिक्षार्थजाता भी नहीं है और फिरता भी नहीं है। सूत्र - ३७९ पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष पहले भी कृश है और पीछे भी कृश रहता है । एक पुरुष पहले कृश है किन्तु पीछे स्थूल हो जाता है । एक पुरुष पहले स्थूल है किन्तु पीछे कृश हो जाता है । एक पुरुष पहले भी स्थूल होता है और पीछे भी स्थूल ही रहता है। पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष का शरीर कृश है और उसके कषाय भी कृश (अल्प) है । एक पुरुष का शरीर कृश है किन्तु उसके कषाय अकृश (अधिक) है । एक पुरुष के कषाय अल्प है किन्तु उसका शरीर स्थूल है । एक पुरुष के कषाय अल्प है और शरीर भी कृश है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष बुध (सत्कर्म करने वाला) है और बुध विवेकी है । एक पुरुष बुध है किन्तु अबुध (विवेकरहित) है । एक पुरुष अबुध है किन्तु बुध (सत्कर्म करने वाला) है । एक पुरुष अबुध है (विवेकरहित) है और अबुध है (सत्कर्म करने वाला भी नहीं है) । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष बुध (शास्त्रज्ञ) है और बुध हृदय है (कार्यकुशल है), एक पुरुष बुध है किन्तु अबुध हृदय है (कार्यकुशल नहीं है), एक पुरुष अबुधहृदय है किन्तु बुध है (शास्त्रज्ञ है) एक पुरुष अबुध है (शास्त्रज्ञ नहीं है) और अबुध है (कार्यकुशल भी नहीं है)। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष अपने पर अनुकम्पा करने वाला है किन्तु दूसरे पर अनुकम्पा करने वाला नहीं है । एक पुरुष अपने पर अनुकम्पा नहीं करता है किन्तु दूसरे पर अनुकम्पा करता है । एक पुरुष अपने पर भी अनुकम्पा करता है और दूसरे पर भी अनुकम्पा करता है । एक पुरुष अपने पर भी अनुकम्पा नहीं करता है और दूसरे पर भी अनुकम्पा नहीं करता है। सूत्र-३८० संभोग चार प्रकार के हैं । देवताओं का, असुरों का, राक्षसों का और मनुष्यों का । संभोग चार प्रकार का है। एक देवता देवी के साथ संभोग करता है । एक देवता असुरी के साथ संभोग करता है । एक असुर देवी के साथ संभोग करता है । एक असुर असुरी के साथ संभोग करता है। संभोग चार प्रकार का है । एक देव देवी के साथ संभोग करता है । एक देव राक्षसी के साथ संभोग करता है एक राक्षस देवी के साथ संभोग करता है । एक राक्षस राक्षसी के साथ संभोग करता है। संभोग चार प्रकार का है। यथा-एक देव देवी के साथ संभोग करता है । एक देव मानुषी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्य देवी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्य मानुषी के साथ संभोग करता है। संभोग चार प्रकार का है । यथा-एक असुर असुरी के साथ संभोग करता है । एक असुर राक्षसी के साथ संभोग करता है । एक राक्षस असुरी के साथ संभोग करता है । एक राक्षस राक्षसी के साथ संभोग करता है । संभोग चार प्रकार के हैं । यथा-एक असुर असुरी के साथ संभोग करता है । एक असुर मानुषी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्य असुरी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्यणी के साथ संभोग करता है। संभोग चार प्रकार के हैं । यथा-एक राक्षस राक्षसी के साथ संभोग करता है। एक राक्षस मनुष्यणी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्य राक्षसी के साथ संभोग करता है । एक मनुष्य मनुष्यणी के साथ संभोग करता है। सूत्र - ३८१ अपध्वंश (चारित्र के फल का नाश) चार प्रकार का है । यथा-आसुरी भावनाजन्य-आसुर भाव, अभियोग भावनाजन्य-अभियोग भाव, सम्मोह भावनाजन्य-सम्मोह भाव, किल्बिष भावनाजन्य-किल्बिष भाव। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 80
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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