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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३८४ ___ काम (विषय-वासना) चार प्रकार के हैं । यथा-शृंगार, करुण, बीभत्स, रौद्र । देवताओं की कामवासना शृंगार प्रधान है । मनुष्यों की कामवासना करुण है । तिर्यंचों की कामवासना बीभत्स है । नैरयिकों की कामवासना रौद्र है। सूत्र-३८५ पानी चार प्रकार के हैं । यथा-एक पानी थोड़ा गहरा है किन्तु स्वच्छ है । एक पानी थोड़ा गहरा है किन्तु मलिन है । एक पानी बहुत गहरा है किन्तु स्वच्छ है । एक पानी बहुत गहरा है किन्तु मलिन है। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से तुच्छ है और तुच्छ हृदय है । एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से तो तुच्छ है किन्तु गम्भीर हृदय है । एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से तो गम्भीर प्रतीत होता है किन्तु तुच्छ हृदय है । एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से भी गम्भीर प्रतीत होता है और गम्भीर हृदय भी है। पानी चार प्रकार का है । यथा-एक पानी छीछरा है और छीछरा जैसा ही दिखता है । एक पानी छीछरा है किन्तु गहरा दिखता है । एक पानी गहरा है किन्तु छीछरा जैसा प्रतीत होता है । एक पानी गहरा है और गहरे जैसा ही प्रतीत होता है। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष तुच्छ प्रकृति है और वैसा ही दिखता भी है। एक पुरुष तुच्छ प्रकृति है किन्तु बाह्य व्यवहार में गम्भीर जैसा प्रतीत होता है । एक पुरुष गम्भीर प्रकृति है किन्तु बाह्य व्यवहार से तुच्छ प्रतीत होता है । एक पुरुष गम्भीर प्रकृति है और बाह्य व्यवहार से भी गम्भीर ही प्रतीत होता है। उदधि (समुद्र) चार प्रकार के हैं । यथा-समुद्र का एक देश छीछरा है और छीछरा जैसा दिखाई देता है । समुद्र का एक भाग छीछरा है किन्तु बहुत गहरे जैसा प्रतीत होता है । समुद्र का एक भाग बहुत गहरा है किन्तु छीछरे जैसा प्रतीत होता है। समुद्र का एक भाग बहुत गहरा है और गहरे जैसा ही प्रतीत होता है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । पूर्वोक्त उदक सूत्र के समान भांगे कहें। सूत्र-३८६ तैराक चार प्रकार के हैं । एक तैराक ऐसा होता है जो समुद्र को तिरने का निश्चय करके समुद्र को ही तिरता है । एक तैराक ऐसा होता है जो समुद्र को तिरने का निश्चय करके गोपद ही तिरता है । एक तैराक ऐसा है जो गोपद तिरने का निश्चय करके समुद्र को तिरता है । एक तैराक ऐसा है जो गोपद तिरने का निश्चय करके गोपद ही तिरता है। तैराक चार प्रकार के हैं । यथा-एक तैराक एक बार समुद्र को तिरकर पुनः समुद्र को तिरने में असमर्थ होता है। एक तैराक एक बार समुद्र को तिरके दूसरी बार गोपद को तिरने में भी असमर्थ होता है। एक तैराक एक बार गोपद को तिरकर पुनः समुद्र को पार करने में असमर्थ होता है । एक तैराक एक बार गोपद को तिरकर पुनः गोपद को पार करने में भी असमर्थ होता है। सूत्र - ३८७ कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण (टूटा-पूटा) नहीं है और पूर्ण (मधु से भरा हुआ) है । एक कुम्भ पूर्ण है, किन्तु खाली है । एक कुम्भ पूर्ण (मधु से भरा हुआ) है किन्तु अपूर्ण (टूटा-फूटा) है । एक कुम्भ अपूर्ण (टूटाफूटा) है और अपूर्ण (खाली है) । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष जात्यादि गुण से पूर्ण है और ज्ञानादि गुण से भी पूर्ण है । एक पुरुष जात्यादि गुण से पूर्ण है किन्तु ज्ञानादि गुण से रहित । एक पुरुष ज्ञानादि गुण से सहित है किन्तु जात्यादि गुण से पूर्ण है । एक पुरुष जात्यादि गुण से भी रहित है और ज्ञानादि गुण से भी रहित है। कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण है और देखने वाले को पूर्ण जैसा ही दिखता है। एक कुम्भ पूर्ण है किन्तु देखने वाले को अपूर्ण जैसा ही दिखता है । एक कुम्भ अपूर्ण है किन्तु देखने वाले को पूर्ण जैसा ही दिखता है एक कुम्भ अपूर्ण है और देखने वाले को अपूर्ण जैसा ही दिखता है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं। यथा-एक पुरुष धन आदि से पूर्ण है और उस धन का उदारतापूर्वक उपभोग करता है अतः पूर्ण जैसा ही प्रतीत होता है । एक पुरुष पूर्ण है (धनादि से पूर्ण है) किन्तु उस धन का उपभोग नहीं करता अतः अपूर्ण (धन हीन) जैसा ही प्रतीत होता है मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 82
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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