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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक करता है । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि अमुक के साथ प्रीति न करूँ किन्तु उसके साथ प्रीति कर लेता है । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि अमुक के साथ प्रीति न करूँ और उसके साथ प्रीति करता भी नहीं है। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । यथा-एक पुरुष स्वयं भोजन आदि से तृप्त होकर आनन्दित होता है किन्तु दूसरे को तृप्त नहीं करता । एक पुरुष दूसरे को भोजन आदि से तृप्त कर प्रसन्न होता है किन्तु स्वयं को तृप्त नहीं करता। एक पुरुष स्वयं भी भोजन आदि से तृप्त होता है और अन्य को भी भोजन आदि से तृप्त करता है । एक पुरुष स्वयं भी तृप्त नहीं होता और अन्य को भी तृप्त नहीं करता। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अपने सद्व्यवहार से अमुक में विश्वास उत्पन्न करूँ और विश्वास उत्पन्न करता भी है । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अपने सद्व्यवहार से अमुक में विश्वास उत्पन्न करूँ किन्तु विश्वास उत्पन्न नहीं करता । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक में विश्वास उत्पन्न नहीं कर सकूँगा किन्तु विश्वास उत्पन्न करने में सफल हो जाता है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक में विश्वास उत्पन्न नहीं कर सकूँगा और विश्वास उत्पन्न कर भी नहीं सकता है। एक पुरुष स्वयं विश्वास करता है किन्तु दूसरे में विश्वास उत्पन्न नहीं कर पाता । एक पुरुष दूसरे में विश्वास उत्पन्न कर देता है, किन्तु स्वयं विश्वास नहीं करता । एक पुरुष स्वयं भी विश्वास करता है और दूसरे में भी विश्वास उत्पन्न करता है । एक पुरुष स्वयं भी विश्वास नहीं करता और न दूसरे में विश्वास उत्पन्न करता है। सूत्र-३३५ वृक्ष चार प्रकार के हैं । यथा-पत्रयुक्त, पुष्पयुक्त, फलयुक्त और छायायुक्त । इसी प्रकार पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । यथा-पत्ते वाले वृक्ष के समान, पुष्प वाले वृक्ष के समान, फल वाले वृक्ष के समान, छाया वाले वृक्ष के समान। सूत्र - ३३६ भारवहन करने वाले के चार विश्राम स्थल हैं । यथा-एक भारवाहक मार्ग में चलता हुआ एक खंधे से दूसरे खंधे पर भार रखता है । एक भारवाहक कहीं पर भार रखकर मल-मूत्रादि का त्याग करता है । एक भारवाहक नागकुमार या सुपर्णकुमार के मंदिर में रात्रि विश्राम लेता है । एक भारवाहक अपने घर पहुँच जाता है। इसी प्रकार श्रमणोपासक के चार विश्राम हैं । यथा-जो श्रमणोपासक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत या प्रत्याख्यान-पौषधोपवास करते हैं । जो श्रमणोपासक सामायिक या देशावगासिक धारण करता है । जो श्रमणोपासक चौदस अष्टमी, अमावास्या या पूर्णिमा के दिन पौषध करता है। जो श्रमणोपासक भक्त-पान का प्रत्याख्यान करता है और पादप के समान शयन करके मरण की कामना नहीं करता है। सूत्र-३३७ पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। यथा-उदितोदित-यहाँ भी उदय (समृद्ध) और आगे भी उदय (परम सुख) है। उदितास्तमित-यहाँ उदय है किन्तु आगे उदय नहीं। अस्तमितोदित-यहाँ उदय नहीं है किन्तु आगे उदय है । अस्तमितास्तमित-यहाँ भी और आगे भी उदय नहीं है । भरत चक्रवर्ती उदितोदित है; ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती उदितास्तमित हैं; हरिकेशबल अणगार अस्तमितोदित हैं; कालशौकरिक अस्तमितास्तमित है। सूत्र-३३८ युग्म चार प्रकार का है । यथा-कृतयुग्म-एक ऐसी संख्या जिसके चार का भाग देने पर शेष चार रहे । त्र्योजएक ऐसी संख्या जिसके तीन का भाग देने पर शेष तीन रहे। द्वापर-एक ऐसी संख्या जिसके दो भाग देने पर शेष दो रहे । कल्योज-एक ऐसी संख्या जिसके एक का भाग देने पर शेष एक रहे । नारक जीवों के चार युग्म हैं। इसी प्रकार २४ दण्डकवर्ती जीवों के चार युग्म हैं। सूत्र- ३३९ शूर चार प्रकार के हैं । यथा-क्षमासूर, तपशूर, दानशूर और युद्धशूर । क्षमाशूर अरिहंत हैं, तपशूर अणगार हैं, दानशूर वैश्रमण हैं और युद्धशूर वासुदेव हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 66
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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