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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक उत्तर पूर्व में स्थिति रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियाँ हैं । उनके नाम ये हैं-नंदुत्तरा, नंदा, उत्तरकुरा और देवकुरा । चार अग्रमहिषियों के नाम-कृष्णा, कृष्णराजी, रामा और रामरक्षिता । इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियाँ हैं । दक्षिण पूर्व में स्थित रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियाँ हैं । उनके नाम ये हैं-समणा, सोमणसा, अर्चिमाली और मनोरमा । चार अग्रमहिषियों के नाम-पद्मा, शिवा, शची और अंजू । इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियाँ हैं । दक्षिण-पश्चिम स्थित रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज शक्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियाँ हैं । उनके नाम ये हैं-भूता, भूतवडिंसा, गोस्तूपा और सुदर्शना । अग्रमहिषियों के नाम-अमला, अप्सरा, नवमिका और रोहिणी । इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियाँ हैं । उत्तर-पश्चिम में स्थित रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र की जम्बूद्वीप जितनी बड़ी चार राजधानियाँ हैं । उनके नाम ये हैं-रत्ना, रत्नोच्चया, सर्व-रत्ना और रत्नसंचया अग्रमहिषियों के नाम-वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा और वसुंधरा इन अग्रमहिषियों की उक्त राजधानियाँ हैं। सूत्र-३३० सत्य चार प्रकार का है। यथा-नाम सत्य, स्थापना सत्य, द्रव्य सत्य और भाव सत्य । सूत्र-३३१ आजीविका (गोशालक) मत वालों का तप चार प्रकार का है । यथा-उग्र तप, घोर तप, रसनियूह तप, जिह्वेन्द्रिय प्रतिसंलीनता। सूत्र-३३२ संयम चार प्रकार का है। यथा-मन संयम, वचन संयम, काय संयम और उपकरण संयम । त्याग चार प्रकार का है । मनत्याग, वचनत्याग, कायत्याग, उपकरण त्याग। अकिंचनता चार प्रकार की है। मन अकिंचनता, वचन अकिंचनता, काय अकिंचनता, उपकरण अकिंचनता स्थान-४ - उद्देशक-३ सूत्र-३३३ रेखाएं चार प्रकार की हैं । यथा-पर्वत की रेखा, पृथ्वी की रेखा, वालु की रेखा और पानी की रेखा । इसी प्रकार क्रोध चार प्रकार का है । यथा-पर्वत की रेखा समान, पृथ्वी की रेखा समान, वालु की रेखा समान, पानी की रेखा समान । पर्वत की रेखा के समान क्रोध करने वाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है । पृथ्वी की रेखा के समान क्रोध करने वाला जीव मरकर तिर्यंच योनि में उत्पन्न होता है । वालु की रेखा के समान क्रोध करने वाला जीव मरकर मनुष्य योनि में उत्पन्न होता है । पानी की रेखा के समान क्रोध करने वाला जीव मरकर देव योनि में उत्पन्न होता है। उदक चार प्रकार का होता है । यथा-कर्दमोदक, खंजनोदक, वालुकोदक और शैलोदक । इसी प्रकार भाव चार प्रकार का है। यथा-कर्दमोदक समान, खंजनोदक समान, वालुकोदक समान और शैलोदक समान । कर्दमो-दक समान भाव रखने वाला जीव मरकर नरक में यावत् शैलोदक समान भाव रखने वाला जीव मरकर देवयोनि में उत्पन्न होता है। सूत्र-३३४ पक्षी चार प्रकार के हैं । यथा-एक पक्षी रुत सम्पन्न (मधुर स्वर वाला) है, किन्त रूप सम्पन्न नहीं है । एक पक्षी रूप सम्पन्न है किन्तु रुत सम्पन्न (मधुर स्वर वाला) नहीं है । एक पक्षी रूप सम्पन्न भी है और रुत सम्पन्न भी है। एक पक्षी रुत सम्पन्न भी नहीं है और रूप सम्पन्न भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का है। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । यथा-एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक के साथ प्रीति करूँ और उसके साथ प्रीति करता भी है । एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक के साथ प्रीति करूँ किन्तु उसके साथ प्रीति नहीं मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 65
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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