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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र- ३, 'स्थान' सूत्र - १५३ हे भदन्त ! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव इन धान्यों को कोठों में सुरक्षित रखने पर, पल्य में सुरक्षित रखने पर, मंच पर सुरक्षित रखने पर, ढक्कन लगाकर, लीप कर, सब तरफ लीप कर, रेखादि के द्वारा लांछित करने पर, मिट्टी की मुद्रा लगाने पर अच्छी तरह बन्द रखने पर इनकी कितने काल तक योनि रहती है ? हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन वर्ष तक योनि रहती है, इसके बाद योनि म्लान हो जाती है, इसके बाद ध्वंसाभिमुख होती है, नष्ट हो जाती है, इसके बाद जीव अजीव हो जाता है और तत्पश्चात् योनि का विच्छेद हो जाता है । स्थान/उद्देश / सूत्रांक सूत्र - १५४ दूसरी शर्कराप्रभा नरक-पृथ्वी के नारकों की तीन सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है । तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी में नारकों की तीन सागरोपम की जघन्य स्थिति है। सूत्र - १५५ पाँचवी धूमप्रभा-पृथ्वी में तीन लाख नरकावास कहे गए हैं । तीन नरक-पृथ्वीयों में नारकों को उष्णवेदना कही गई हैं, यथा- पहली, दूसरी और तीसरी नरक में । तीन पृथ्वीयों में नारक उष्णवेदना का अनुभव करते हैं, यथा- प्रथम, दूसरी और तीसरी नरक में । सूत्र- १५६ लोक में तीन समान प्रमाण (लम्बाई-चौड़ाई) वाले, समान पार्श्व (आजू-बाजू) वाले और सब विदिशाओं में भी समान कहे गए हैं, यथा- अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप, सर्वार्थसिद्ध महाविमान । लोक में तीन समान प्रमाण वाले, समान पार्श्व वाले और सब विदिशाओं में समान कहे गए हैं, यथा-सीमन्त नरकावास, समयक्षेत्र, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी । सूत्र - १५७ तीन समुद्र प्रकृति से उदकरस वाले कहे गए हैं, यथा- कालोदधि, पुष्करोदधि और स्वयंभूरमण । तीन समुद्रों में मच्छ कच्छ आदि जलचर विशेष रूप से कहे गए हैं, यथा- लवण, कालोदधि और स्वयंभूरमण । सूत्र - १५८ शीलरहित, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादारहित, प्रत्याख्यान पौषध-उपवास आदि नहीं करने वाले तीन प्रकार व्यक्ति मृत्यु के समय मर कर नीचे सातवी नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में नारक रूप से उत्पन्न होते हैं, यथा-चक्रवर्ती आदि राजा, माण्डलिक राजा (शेष सामान्य राजा) और महारम्भ करने वाले कुटुम्बी । सुशील, सुव्रती, सद्गुणी मर्यादा वाले, प्रत्याख्यान- पौषध उपवास करने वाले तीन प्रकार के व्यक्ति मृत्यु के समय मर कर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, यथा- कामभोगों का त्याग करने वाले राजा, कामभोग के त्यागी सेनापति, प्रशस्ता-धर्माचार्य सूत्र - १५९ ब्रह्मलोक और लान्तक में विमान तीन वर्ण वाले कहे गए हैं। यथा काले, नीले और लाल आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प में देवों के भवधारणीय शरीरों की ऊंचाई तीन हाथ की कही गई है । सूत्र - १६० तीन प्रज्ञप्तियाँ नियत समय पर पढ़ी जाती हैं, यथा- चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति । स्थान -३ - उद्देशक - २ सूत्र - १६१ लोक तीन प्रकार के कहे गए हैं, नामलोक, स्थापनालोक और द्रव्यलोक । भावलोक तीन प्रकार के कहे गए हैं, ज्ञानलोक दर्शनलोक और चारित्रलोक । लोक तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद” Page 33
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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