SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-१४८ योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-शीत, उष्ण और शीतोष्ण । यह तेजस्काय को छोड़कर शेष एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, सम्मूर्छिम तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय और सम्मूर्छिम मनुष्यों को होती है। योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र । यह एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों, सम्मूर्छिम तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों और सम्मूर्छिम मनुष्यों को होती है। योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-संवृता, विवृता और संवृत-विवृता। योनि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-कूर्मोन्नता, शंखावर्ता और वंशीपत्रिका । उत्तम पुरुषों की माताओं की कूर्मोन्नता योनि होती है । कूर्मोन्नता योनि में तीन प्रकार के उत्तम पुरुष गर्भ रूप में उत्पन्न होते हैं, यथा-अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव-वासुदेव । चक्रवर्ती के स्त्रीरत्न की योनि शंखावर्त्त होती है । शंखावर्त्त योनि में बहुत से जीव और पुद्गल पैदा होते हैं एवं नष्ट होते हैं किन्तु जन्म धारण नहीं करते हैं । वंशीपत्रिकायोनि सामान्य मनुष्यों की योनि है। वंशीपत्रिकायोनि में बहुत से सामान्य मनुष्य गर्भरूप में उत्पन्न होते हैं। सूत्र-१४९ तृण (बादर) वनस्पतिकाय तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा-संख्यात जीव वाली, असंख्यात जीव वाली और अनन्त जीव वाली। सूत्र - १५० जम्बूद्वीपवर्ती भरतक्षेत्र में तीन तीर्थ कहे गए हैं, यथा-मागध, वरदाम और प्रभास । इसी तरह ऐरवत क्षेत्र में भी समझने चाहिए । जम्बूद्वीपवर्ती महाविदेह क्षेत्र में एक एक चक्रवर्ती विजय में तीन तीर्थ कहे गए हैं, यथा-मागध, वरदाम और प्रभास । इसी तरह धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में तथा अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में भी इसी तरह जानना चाहिए। सूत्र-१५१ जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल के सुषम नामक आरक का काल तीन क्रोडाकोड़ी सागरोपम था । इसी तरह इस अवसर्पिणी काल के सुरमआरक का काल इतना ही है । आगामी उत्सर्पिणी के सुषम आरक का काल इतना ही होगा। इसी तरह धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में भी इसी तरह अर्ध पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल का कथन करना। जम्बूद्वीपवर्ती भरत ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल के सुषमसुषमा आरे में मनुष्य तीन कोस की ऊंचाई वाले और तीन पल्योपम के परमायुष्य वाले थे । इसी तरह इस अवसर्पिणी काल और आगामी उत्सर्पिणी काल मं भी समझना चाहिए । जम्बूद्वीपवर्ती देवकुरु और उत्तरकुरु में मनुष्य तीन कोस की ऊंचाई वाले कहे गए हैं तथा वे तीन पल्योपम की परमायु वाले हैं। इसी तरह अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध तक का कथन करना चाहिए। जम्बूद्वीपवर्ती भरत-ऐरवत क्षेत्र में एक एक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी में तीन वंश (उत्तम पुरुष परम्परा) उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे, यथा-अर्हन्तवंश, चक्रवर्तीवंश और दशाहवंश । इसी तरह अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध तक कथन करना चाहिए । जम्बूद्वीप के भरत, ऐरवत क्षेत्र में एक एक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल में तीन प्रकार के उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे, यथा-अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव-वासुदेव । इस प्रकार अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध तक समझना चाहिए। तीन यथायु का पालन करते हैं (निरुपक्रम आयु वाले होते हैं), यथा-अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव-वासुदेव। तीन मध्यमायु का पालन करते हैं (वृद्धत्व रहित आयु वाले होते हैं) । यथा-अर्हन्त, चक्रवर्ती और बलदेव-वासुदेव । सूत्र - १५२ बादर तेजस्काय के जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन अहोरात्र की कही गई हैं, बादरवायुकाय की उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की कही गई है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 32
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy