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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-१६२ असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर की तीन प्रकार की परीषद कही गई है, यथा-समिता चण्डा और जाया । समिता आभ्यन्तर परीषद है, चण्डा मध्यम परीषद है, जाया बाह्य परीषद है । असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के सामानिक देवों की तीन परीषद हैं समिता आदि । इसी तरह त्रायस्त्रिंशकों की भी तीन परीषद जानें। लोकपालों की तीन परीषद हैं तुम्बा, त्रुटिता और पर्वा । इसी तरह अग्रमहिषियों की भी परीषद जाने । बलीन्द्र की भी इसी तरह तीन परीषद समझनी चाहिए। अग्रमहिषी पर्यन्त इसी तरह परीषद जाननी चाहिए। धरणेन्द्र की, उसके सामानिक और त्रायस्त्रिंशकों की तीन प्रकार की परीषद कही गई है, यथा-समिता, चण्डा और जाया। इसके लोकपाल और अग्रमहिषियों की तीन परीषद कही गई हैं, यथा ईषा, त्रुटिता और दृढरथा । धरणेन्द्र की तरह शेष भवनवासी देवों की परीषद जाननी चाहिए। पिशाच-राज, पिशाचेन्द्र काल की तीन परीषद कही गई हैं यथा-ईषा, त्रुटिता और दृढरथा । इसी तरह सामानिक देव और अग्रमहिषियों की भी परीषद जानें । इसी तरह यावत्-गीतरति और गीतयशा की भी परीषद जाननी चाहिए। ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र की तीन परीषद कही गई हैं, यथा-तुम्बा, त्रुटिता और पर्वा । इसी तरह सामानिक देव और अग्रमहिषियों की भी परीषद जाने । इसी तरह सूर्य की भी परीषद जानें। देवराज देवेन्द्र शक्र की तीन परीषद कही गई हैं, यथा-समिता, चण्डा और जाया । इसी प्रकार अग्रमहिषी पर्यन्त चमरेन्द्र के समान तीन परीषद कहना चाहिए । इसी तरह अच्युत के लोकपाल पर्यन्त तीन परीषद समझनी चाहिए। सूत्र - १६३ तीन याम कहे गए हैं, यथा-प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम । तीन यामों में आत्मा केवलि-प्ररूपित धर्म सून सकता है, यथा-प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में । इसी तरह यावत्-आत्मा तीन यामों में केवलज्ञान उत्पन्न करता है, यथा-प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में। तीन वय कही गई हैं, प्रथम वय, मध्यम वय, अन्तिम वय । इन तीनों वय में आत्मा केवलि-प्रज्ञप्त धर्म सून पाता है, प्रथम वय, मध्यम वय और अन्तिम वय । केवलज्ञान उत्पन्न होने तक का कथन पहले के समान ही जानना। सूत्र - १६४ बोधि तीन प्रकार की कही गई हैं । यथा-ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि । तीन प्रकार के बुद्ध कहे गए हैं, यथा-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध । इसी तरह तीन प्रकार का मोह और तीन प्रकार के मूढ़ समझना। सूत्र - १६५ प्रव्रज्या तीन प्रकार की कही गई है, यथा-इहलोकप्रतिबद्धा, परलोकप्रतिबद्धा, उभयलोकप्रतिबद्धा। तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई हैं, यथा-पुरतः प्रतिबद्धा, मार्गतः प्रतिबद्धा, उभयतः प्रतिबद्धा । तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई हैं, व्यथा उत्पन्न कर दी जाने वाली दीक्षा, अन्यत्र ले जाकर दी जाने वाली दीक्षा, धर्म तत्व समझाकर दी जाने वाली दीक्षा। तीन प्रकार की प्रव्रज्या है, सद्गुरुओं की सेवा के लिए ली गई दीक्षा, आख्यानप्रव्रज्या धर्मदेशना के दिये जाने से ली गई दीक्षा, संगार प्रव्रज्या-संकेत से ली गई दीक्षा। सूत्र-१६६ तीन निर्ग्रन्थ नोसंज्ञोपयुक्त हैं, यथा-पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक। तीन निर्ग्रन्थ संज्ञ-नोसंज्ञोपयुक्त (संज्ञा और नोसंज्ञा दोनों से संयुक्त) कहे गए हैं । यथा-बकुश, प्रतिसेवना कुशील और कषायकुशील। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 34
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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