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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सोना, चाँदी, धन, धान्य, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि सब प्रकार के संग्रह से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सब प्रकार के खोटे-तौले-नाप को आजीवन नहीं छोडते, जो सब प्रकार के आरम्भ-समारम्भों का जीवनभर त्याग नहीं करते । वे सभी प्रकार के दुष्कृत्यों को करने-कराने से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सभी प्रकार की पचनपाचन आदि क्रियाओं से आजीवन निवृत्त नहीं होते, तथा जो जीवनभर प्राणियों को कूटने, पीटने, धमकाने, प्रहार करने, वध करने और बाँधने तथा उन्हें सब प्रकार से क्लेश देने से निवृत्त नहीं होते, ये तथा अन्य प्रकार के सावध कर्म हैं, जो बोधिबीजनाशक हैं तथा दूसरे प्राणियों को संताप देने वाले हैं, जिन्हें क्रूर कर्म करने वाले अनार्य करते हैं, उन से जो जीवनभर निवृत्त नहीं होते। जैसे कि कोई अत्यन्त क्रूर पुरुष चावल, मसूर, तिल, मूंग, उडद, निप्पाव कलत्थी, चंवला, परिमंथक आदि अकारण व्यर्थ ही दण्ड देते हैं । इसी प्रकार तथाकथित अत्यन्त क्रर पुरुष तीतर, बटेर, लाव कपिंजल, मृग, भैंसे, सूअर, ग्राह, गोह, कछुआ, सरीसृप आदि प्राणियों को अपराध के बिना व्यर्थ ही दण्ड देते हैं। उनकी जो बाह्य परीषद् होती है, जैसे दास, या संदेशवाहक अथवा दूत, वेतन या दैनिक वेतन पर रखा गया नौकर, बटाई पर काम करने वाला अन्य कामकाज करने वाला एवं भोग की सामग्री देने वाला, इत्यादि । इन लोगों में से किसी का जरा-सा भी अपराध हो जाने पर ये स्वयं उसे भारी दण्ड देते हैं । जैसे कि-इस पुरुष को दण्ड दो या डंडे से पीटो, इसका सिर मूंड दो, इसे डांटो, पीटो, इसकी बाँहें पीछे को बाँध दो, इसके हाथपैरों में हथकड़ी और बेड़ी डाल दो, उसे हाडीबन्धन में दे दो, इसे कारागार में बंद कर दो, इसके अंगों को सिकोड़कर मरोड़ दो, इसके हाथ, पैर, कान, सिर और मुँह, नाक-ओठ काट डालो, इसके कंधे पर मारकर आरे से चीर डालो, इसके कलेजे का माँस नीकाल लो, इसकी आँखें नीकाल लो, इसके दाँत उखाड़ दो, इसके अण्डकोश उखाड़ दो, इसकी जीभ खींच लो, इसे उलटा लटका दो, इसे ऊपर या कुएं में लटका दो, इसे जमीन पर घसीटो, इसे डूबो दो, इसे शूली में पिरो दो, इसके शूल चुभो दो, इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो, इसके अंगों को घायल करके उस पर नमक छिड़क दो, इसे मृत्युदण्ड दे दो, इसे सिंह की पूँछ में बाँध दो या उसे बैल की पूँछ के साथ बाँध दो, इसे दावाग्नि में झौंककर जला दो, इसका माँस काट कर कौओं को खिला दो, इसको भोजन-पानी देना बंद कर दो, इसे मार-पीसट कर जीवनभर कैद में रखो, इसे इनमें से किसी भी प्रकार से बूरी मौत मारो। इन क्रूर पुरुषों की जो आभ्यन्तर परीषद होती है, जैसे कि-माता, पिता, भाई, बहन, पत्नी, पुत्र, पुत्री अथवा पुत्रवधू आदि । इनमें से किसी का जरा-सा भी अपराध होने पर वे क्रूर पुरुष उसे भारी दण्ड देते हैं । वे उसे शर्दी के दिनों में ठंडे पानी में डाल देते हैं । जो-जो दण्ड मित्रद्वेषप्रत्ययिक क्रियास्थान में कहे गए हैं, वे सभी दण्ड वे इन्हें देते हैं । वे ऐसा करके स्वयं अपने परलोक का अहित करते हैं । वे अन्त में दुःख पाते हैं, शोक करते हैं, पश्चात्ताप करते हैं, पीड़ित होते हैं, संताप पाते हैं, वे दुःख, शोक, विलाप, पीड़ा, संताप एवं वध-बंध आदि क्लेशों से निवृत्त नहीं हो पाते। इसी प्रकार वे अधार्मिक पुरुष स्त्रीसम्बन्धी तथा अन्य विषयभोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, अत्यन्त आसक्त तथा तल्लीन होकर पूर्वोक्त प्रकार से चार, पाँच या छह या अधिक से अधिक दस वर्ष तक अथवा अल्प या अधिक समय तक शब्दादि विषयभोगों का उपभोग करके प्राणियों के साथ वैर का पुँज बांध करके, बहुत-से क्रूरकर्मों का संचय करके पापकर्म के भार से इस तरह दब जाते हैं, जैसे कोई लोह का गोला या पथ्थर का गोला पानी में डालने पर पानी के तल का अतिक्रमण करके भार के कारण पृथ्वीतल पर बैठ जाता है, इसी प्रकार अतिक्रूर पुरुष अत्यधिक पाप से युक्त पुर्वकृत कर्मों से अत्यन्त भारी, कर्मपंक से अति मलिन, अनेक प्राणियों के साथ बैर बाँधा हुआ, अत्यधिक अविश्वासयोग्य, दम्भ से पूर्ण, शठता या वंचना में पूर्ण, देश, वेष एवं भाषा को बदलकर धूर्तता करनेमें अतिनिपुण, जगतमें अपयश के काम करनेवाला, तथा त्रसप्राणियों के घातक; भोगों के दलदल में फँर वह पुरुष आयुष्य पूर्ण होते ही मरकर रत्नप्रभादि भूमियोंको लाँघकर नीचे के नरकतलमें जाकर स्थित होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 79
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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