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आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक ग्रामानुग्राम विचरण करे।
ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी के मार्ग में चोर इकट्ठे होकर वस्त्रहरण करने के लिए आ जाए और कहे कि आयुष्मन् श्रमण ! यह वस्त्र लाओ, हमारे हाथ में दे दो, या हमारे सामने रख दो, तो जैसे ईर्याऽ-ध्ययन में वर्णन किया है, उसी प्रकार करे । इतना विशेष है कि यहाँ वस्त्र का अधिकार है।
यही वस्तुतः साधु-साध्वी का सम्पूर्ण ज्ञानादि आचार है। जिसमें सभी अर्थों में ज्ञानादि से सहित होकर सदा प्रयत्नशील रहे। ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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