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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-६- पात्रैषणा उद्देशक-१ सूत्र -४८६ संयमशील साधु या साध्वी यदि पात्र ग्रहण करना चाहे तो जिन पात्रों को जाने वे इस प्रकार हैं-तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र और मिट्टी का पात्र । इन तीनों प्रकार के पात्रों को साधु ग्रहण कर सकता है । जो निर्ग्रन्थ तरुण बलिष्ठ स्वस्थ और स्थिर-सहन वाला है, वह इस प्रकार का एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। वह साधु, साध्वी अर्द्धयोजन के उपरांत पात्र लेने के लिए जाने का मन में विचार न करे। साधु या साध्वी को यदि पात्र के सम्बन्ध में यह ज्ञात हो जाए कि किसी भावुक गृहस्थ ने धन के सम्बन्ध से रहित निर्ग्रन्थ साधु को देने की प्रतिज्ञा (विचार) करके किसी एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से समारम्भ करके पात्र बनवाया है, यावत् (पिण्डैषणा समान) अनैषणीय समझकर मिलने पर भी न ले । जैसे यह सूत्र एक साधर्मिक साधु के लिए है, वैसे ही अनेक साधर्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी एवं अनेक साधर्मिणी साध्वीयों के सम्बन्ध में शेष तीन आलापक समझ लेने चाहिए । और पाँचवा आलापक (पिण्डैषणा अध्ययन में) जैसे बहुत से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण आदि को गिन गिन कर देने के सम्बन्ध में है, वैसे ही यहाँ भी समझ लेना चाहिए। यदि साधु-साध्वी यह जाने के असंयमी गृहस्थने भिक्षुओं को देने की प्रतिज्ञा करके बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, आदि के उद्देश्य से पात्र बनाया है उसका भी शेष वर्णन वस्त्रैषणा के आलापक के समान समझ लेना चाहिए साधु या साध्वी यदि यह जाने कि नाना प्रकार के महामूल्यवान पात्र हैं, जैसे कि लोहे के पात्र, रांगे के पात्र, तांबे के पात्र, सीसे के पात्र, चाँदी के पात्र, सोने के पात्र, पीतल के पात्र, हारपुट धातु के पात्र, मणि, काँच और कांसे के पात्र, शंख और सींग के पात्र, दाँत के पात्र, वस्त्र के पात्र, पथ्थर के पात्र, या चमड़े के पात्र, दूसरे भी इसी तरह के नाना प्रकार के महा-मूल्यवान पात्रों को अप्रासुक और अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। साधु या साध्वी फिर भी उन पात्रों को जाने, जो नाना प्रकार के महामूल्यवान बन्धन वाले हैं, जैसे कि वे लोहे के बन्धन हैं, यावत् चर्म-बंधन वाले हैं, अथवा अन्य इसी प्रकार के महामूल्यवान बन्धन वाले हैं, तो उन्हें अप्रासुक और अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। इन पूर्वोक्त दोषों के आयतनों का परित्याग करके पात्र ग्रहण करना चाहिए। साधु को चार प्रतिमा पूर्वक पात्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा यह है कि साधु या साध्वी कल्पनीय पात्र का नामोल्लेख करके उसकी याचना करे, जैसे कि तूम्बे का पात्र, या लकड़ी का पात्र या मिट्टी का पात्र; उस प्रकार के पात्र की स्वयं याचना करे, या फिर वह स्वयं दे और वह प्रासुक और एषणीय हो तो प्राप्त होने पर उसे ग्रहण करे। दूसरी प्रतिमा है-वह साधु या साध्वी पात्रों को देखकर उनकी याचना करे, जैसे कि गृहपति यावत् कर्मचारिणी से । वह पात्र देखकर पहले ही उसे कहे-क्या मुझे इनमें से एक पात्र दोगे? जैसे कि तूम्बा, काष्ठ या मिट्टी का पात्र । इस प्रकार के पात्र की याचना करे, या गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण करे। तीसरी प्रतिमा इस प्रकार है-वह साधु या साध्वी यदि ऐसा पात्र जाने कि वह गृहस्थ के द्वारा उपभुक्त है अथवा उसमें भोजन किया जा रहा है, ऐसे पात्र की पूर्ववत् याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे। चौथी प्रतिमा यह है-वह साधु या साध्वी किस उज्झितधार्मिक पात्र की याचना करे, जिसे अन्य बहुत-से शाक्यभिक्षु, ब्राह्मण यावत् भिखारी तक भी नहीं चाहते, उस प्रकार के पात्र की पूर्ववत् स्वयं याचना करे, अथवा वह गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ग्रहण करे । इन चार प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा का ग्रहण...जैसे पिण्डैषणा-अध्ययन में वर्णन है, उसी प्रकार जाने । साधु को इसके द्वारा पात्र-गवेषणा करते देखकर यदि कोई गृहस्थ कहे कि अभी तो तुम जाओ, तुम एक मास यावत् कल या परसों तक आना..." शेष सारा वर्णन वस्त्रैषणा समान जानना । इसी प्रकार यदि कोई गृहस्थ कहे मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 96
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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