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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक - दूसरी प्रतिमा-वह साधु या साध्वी वस्त्र को पहले देखकर गृह-स्वामी यावत् नौकरानी आदि से उसकी याचना करे । आयुष्मन् गृहस्थ भाई ! अथवा बहन ! क्या तुम इन वस्त्रों में से किसी एक वस्त्र को मुझे दोगे/दोगी? इस प्रकार साधु या साध्वी पहले स्वयं वस्त्र की याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो प्रासुक एवं एषणीय होने पर ग्रहण करे। तीसरी प्रतिमा-साधु या साध्वी वस्त्र के सम्बन्ध में जाने, जैसे कि-अन्दर पहनने के योग्य या ऊपर पहनने के योग्य । तदनन्तर इस प्रकार के वस्त्र की याचना करे या गृहस्थ उसे दे तो उस वस्त्र को प्रासुक एवं एषणीय होने पर मिलने पर ग्रहण करे। चौथी प्रतिमा-वह साधु या साध्वी उज्झितधार्मिक वस्त्र की याचना करे । जिस वस्त्र को बहुत से अन्य शाक्यादि भिक्षु यावत् भिखारी लोग भी लेना न चाहें, ऐसे वस्त्र की याचना करे अथवा वह गृहस्थ स्वयं ही साधु को दे तो उस वस्तु को प्रासुक और एषणीय जानकर ग्रहण कर ले । इन चारों प्रतिमाओं के विषय में जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में वर्णन किया गया है, वैसे ही यहाँ समझ लेना चाहिए। कदाचित् इन (पूर्वोक्त) वस्त्र-एषणाओं से वस्त्र की गवेषणा करने वाले साधु को कोई गृहस्थ कहे किआयुष्मन श्रमण! तुम इस समय जाओ, एक मास, या दस या पाँच रात के बाद अथवा कल या परसों आना, तब हम तुम्हें एक वस्त्र देंगे । ऐसा सूनकर हृदय में धारण करके वह साधु विचार कर पहले ही कह दे मेरे लिए इस प्रकार का संकेतपूर्वक वचन स्वीकार करना कल्पनीय नहीं है । अगर मुझे वस्त्र देना चाहते हो तो दे दो। उस साधु के इस प्रकार कहने पर भी यदि वह गृहस्थ यों कहे कि-आयुष्मन् श्रमण ! अभी तुम जाओ । थोड़ी देर बाद आना, हम तुम्हें एक वस्त्र दे देंगे । इस पर वह पहले मन में विचार करके उस गृहस्थ से कहे मेरे लिए इस प्रकार से संकेतपूर्वक वचन स्वीकार करना कल्पनीय नहीं है। अगर मुझे देना चाहते हो तो इसी समय दे दो। साधु के इस प्रकार कहने पर यदि वह गृहस्थ घर के किसी सदस्य को यों कहे कि वह वस्त्र लाओ, हम उसे श्रमण को देंगे । हम तो अपने निजी प्रयोजन के लिए बाद में भी समारम्भ करके और उद्देश्य करके यावत् और वस्त्र बनवा लेंगे। ऐसा सूनकर विचार करके उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। कदाचित् गृहस्वामी घर के किसी व्यक्ति से यों कहे कि वह वस्त्र लाओ, तो हम उसे स्नानीय पदार्थ से, चन्दन आदि उद्वर्तन द्रव्य से, लोध्र से, वर्ण से, चूर्ण से या पद्म आदि सुगन्धित पदार्थों से, एक बार या बार-बार घिसकर श्रमण को देंगे। ऐसा सूनकर एवं उस पर विचार करके वह साधु पहले से ही कह दे-तुम इस वस्त्र को स्नानीय पदार्थों से यावत् पद्म आदि सुगन्धित द्रव्यों से आघर्षण या प्रघर्षण मत करो । यदि मुझे वह वस्त्र देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो । साधु के द्वारा इस प्रकार कहने पर भी वह गृहस्थ स्नानीय सुगन्धित द्रव्यों से एक बार या बार-बार घिसकर उस वस्त्र को देने लगे तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर भी ग्रहण न करे। ___कदाचित् गृहपति घर के किसी सदस्य से कहे कि उस वस्त्र को लाओ, हम उसे प्रासुक शीतल जल से या प्रासुक उष्ण जल से एक बार या कईं बार धोकर श्रमण को देंगे। इस प्रकार की बात सुनकर एवं उस पर विचार करके वह पहले ही दाता से कह दे- इस वस्त्र को तुम प्रासुक शीतल जल से या प्रासुक उष्ण जल से एक बार या कई बार मत धोओ । यदि मुझे इसे देना चाहते हो तो ऐसे ही दे दो । इस प्रकार कहने पर भी यदि वह गृहस्थ उस वस्त्र को ठण्डे या गर्म जल से एक बार या कईं बार धोकर साधु को देने लगे तो वह उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। यदि वह गृहस्थ अपने घर के किसी व्यक्ति से यों कहे कि उस वस्त्र को लाओ, हम उसमें से कन्द यावत् हरी नीकालकर साधु को देंगे। इस प्रकार की बात सूनकर, उस पर विचार करके वह पहले ही दाता से कह दे- इस वस्त्र में से कन्द यावत् हरी मत नीकालो, मेरे लिए इस प्रकार का वस्त्र ग्रहण करना कल्पनीय नहीं है। साधु के द्वारा इस प्रकार कहने पर भी वह गृहस्थ कन्द यावत् हरी वस्तु को नीकाल कर देने लगे तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय समझकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। कदाचित् वह गृहस्वामी वस्त्र को दे, तो वह पहले ही विचार करके उससे कहे-तुम्हारे ही इस वस्त्र को मैं मुनि दीपरत्नसागर कृत् (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद” Page 92
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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