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आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक प्रकार न कहे-अरे होल रे गोले! या हे गोल ! अय वृषल! हे कुपक्ष! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता-पिता हैं । साधु इस प्रकार की सावध, सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले।
संयमशील साधु या साध्वी किसी पुरुष आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार सम्बोधित करे - हे अमुक ! हे आयुष्मन् ! ओ श्रावकजी ! हे उपासक ! धार्मिक ! या हे धर्मप्रिय ! इस प्रकार की निरवद्य यावत् भूतोपघातरहित भाषा विचारपूर्वक बोले।
साधु या साध्वी किसी महिला को बुला रहे हों, बहुत आवाझ देने पर भी वह न सूने तो उसे ऐसे नीच सम्बोधनों से सम्बोधित न करे-अरी होली ! अरी गोली ! अरी वृषली! हे कुपक्षे! अरी घटदासी! कुत्ती! अरी चोरटी! हे गुप्तचरी ! अरी मायाविनी ! अरी झूठी ! ऐसी ही तू है और ऐसे ही तेरे माता-पिता हैं ! विचारशील साधु-साध्वी इस प्रकार की सावध सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले।
साधु या साध्वी किसी महिला को आमंत्रित कर रहे हों, वह न सूने तो-आयुष्मती! भवती, भगवती ! श्राविके उपासिके ! धार्मिके ! धर्मप्रिये! इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीवोपघात-रहित भाषा विचारपूर्वक बोले। सूत्र-४६९
साधु या साध्वी इस प्रकार न कहे कि नभोदेव है, गर्ज देव है, या विद्युतदेव है, प्रवृष्ट देव है, या निवृष्ट देव है, वर्षा बरसे तो अच्छी या न बरसे तो अच्छा, धान्य उत्पन्न हों या न हों, रात्रि सुशोभित हो या न हो, सूर्य उदय हो या न हो, वह राजा जीते या न जीते । साधु इस प्रकार की भाषा न बोले । साधु या साध्वी को कहने का प्रसंग उपस्थित हो तो आकाश को गुह्यानुचरित-कहे या देवों के गमनागमन करने का मार्ग कहे । यह पयोधर जल देनेवाला है, संमूर्छिम जल बरसता है, या वह मेघ बरसता है, या बादल बरस चूका है, इस प्रकार की भाषा बोले।
यही उस साधु और साध्वी की साधुता की समग्रता है कि वह ज्ञानादि अर्थों से तथा समितियों से युक्त होकर सदा इसमें प्रयत्न करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-४ - उद्देशक-२ सूत्र-४७०
संयमशील साधु या साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें देखकर इस प्रकार न कहे। जैसे कि गण्डी माला रोग से ग्रस्त या जिसका पैर सूझ गया हो को गण्डी, कुष्ठ-रोग से पीड़ित को कोढ़िया, यावत् मधुमेह से पीड़ित रोगी को मधुमेही कहकर पुकारना, अथवा जिसका हाथ कटा हुआ है उसे हाथकटा, पैरकटे को पैरकटा, नाक कटा हुआ हो उसे नकटा, कान कट गया हो उसे कानकटा और ओठ कटा हुआ हो, उसे ओठकटा कहना । ये और अन्य जितने भी इस प्रकार के हों, उन्हें इस प्रकार की भाषाओं से सम्बोधित करने पर वे व्यक्ति दुःखी या कुपित हो जाते हैं । अतः ऐसा विचार करके उन लोगों को उन्हें (जैसे हों वैसी) भाषा से सम्बोधित न करे।
साधु या साध्वी यद्यपि कितने ही रूपों को देखते हैं, तथापि वे उनके विषय में इस प्रकार कहें। जैसे कि ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, उपादेयवचनी या लब्धियुक्त कहें। जिसकी यश:कीर्ति फैली हुई हो उसे यशस्वी, जो रूपवान हो उसे अभिरूप, जो प्रतिरूप हो उसे प्रतिरूप, प्रासाद गुण से युक्त हो उसे प्रासादीय, जो दर्शनीय हो, उसे दर्शनीय कहकर सम्बोधित करे । ये और जितने भी इस प्रकार के अन्य व्यक्ति हों, उन्हें इस प्रकार की भाषाओं से सम्बोधित करने पर वे कुपित नहीं होते । अतः इस प्रकार निरवद्य भाषाओं का विचार करके साधु-साध्वी निर्दोष भाषा बोले।
साधु या साध्वी यद्यपि कई रूपों को देखते हैं, जैसे कि खेतों की क्यारियाँ, खाइयाँ या नगर के चारों ओर बनी नहरें, प्राकार, नगर के मुख्य द्वार, अर्गलाएं, गड्ढे, गुफाएं, कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षागार, पर्वतगृह, चैत्य युक्त वृक्ष, चैत्ययुक्त स्तूप, लोहा आदिके कारखाने, आयतन, देवालय, सभा, प्याऊ, दुकानें, मालगोदाम, यानगृह, धर्मशालाएं, चूने, दर्भ, वल्क के कारखाने, वन कर्मालय, कोयले, काष्ठ आदि के कारखाने, श्मशान-गृह, शान्ति-कर्मगृह,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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