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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक से इस प्रतिज्ञा हेतु, कारण और उपदेश का निर्देश किया है कि साधु अन्य साफ और एकाद दिन में ही पार किया जा सके ऐसे मार्ग के रहते इस प्रकार के अटवी-मार्ग से जाने का संकल्प न करे। अतः साधु को परिचित और साफ मार्ग से ही यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए। सूत्र - ४५२ ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि मार्ग में नौका द्वारा पार कर सकने योग्य जलमार्ग है; परन्तु यदि वह यह जाने कि नौका असंयत के निमित्त मूल्य देकर खरीद कर रहा है, या उधार ले रहा है, या नौका की अदला-बदली कर रहा है, या नाविक नौका को स्थल से जल में लाता है, अथवा जल से उसे स्थल में खींच ले जाता है, नौका से पानी उलीचकर खाली करता है, अथवा कीचड़ में फँसी हुई नौका को बाहर नीकाल कर साधु के लिए तैयार करके साधु को उस पर चढ़ने के लिए प्रार्थना करता है, तो इस प्रकार की नौका (पर साधु न चढ़े ।) चाहे वह ऊर्ध्वगामिनी हो, अधोगामिनी हो या तिर्यग्गामिनी, जो उत्कृष्ट एक योजनप्रमाण क्षेत्र में चलती है, या अर्द्ध योजनप्रमाण क्षेत्र में चलती है, गमन करने के लिए उस नौका पर साधु सवार न हो।। (कारणवश नौका में बैठना पड़े तो) साधु या साध्वी सर्वप्रथम तिर्यग्गामिनी नौका को जान-देख ले । यह जानकर वह गृहस्थ की आज्ञा को लेकर एकान्त में चला जाए । वहाँ जाकर भाण्डोपकरण का प्रतिलेखन करे, तत्पश्चात् सभी उपकरणों को इकट्ठे करके बाँध ले । फिर सिर से लेकर पैर तक शरीर का प्रमार्जन करे । आगार सहित प्रत्याख्यान करे । यह सब करके एक पैर जल में और एक स्थल में रखकर यतनापूर्वक उस नौका पर चढ़े। सूत्र-४५३ साधु या साध्वी नौका पर चढ़ते हुए न नौका के अगले भाग में बैठे, न पिछले भाग में बैठे और न मध्य भागमें। तथा नौका के बाजुओं को पकड़-पकड़ कर या अंगुली से बता-बताकर या उसे ऊंची या नीची करके एकटक जल को नदेखे। यदि नाविक नौका में चढ़े हुए साधु से कहे कि "आयुष्मन् श्रमण ! तुम इस नौका को ऊपर की ओर खींचो, अथवा अमुक वस्तु को नौका में रखकर नौका को नीचे की ओर खींचो, या रस्सी को पकड़कर नौका को अच्छी तरह से बाँध दो, अथवा रस्सी से कस दो ।' नाविक के इस प्रकार के वचनों को स्वीकार न करे, किन्तु मौन बैठा रहे। यदि नौकारूढ साधु को नाविक यह कहे कि- आयुष्मन श्रमण ! यदि तुम नौका को ऊपर या नीचे की ओर खींच नहीं सकते, या रस्सी पकड़कर नौका को भलीभाँति बाँध नहीं सकते या जोर से कस नहीं सकते, तो नाव पर रखी हुई रस्सी को लाकर दो । हम स्वयं नौका को ऊपर या नीचे की ओर खींच लेंगे, जोर से कस देंगे। इस पर भी साधु नाविक के इस वचन को स्वीकार न करे, चूपचाप उपेक्षाभाव से बैठा रहे। यदि नाविक यह कहे कि- आयुष्मन् श्रमण ! जरा इस नौका को तुम डांड से, पीठ से, बड़े बाँस से, बल्ली से और अबलुक से तो चलाओ। नाविक के इस प्रकार के वचन को मुनि स्वीकार न करे, बल्कि उदासीन भाव से मौन होकर बैठा रहे। नौका में बैठे हुए साधु से अगर नाविक यह कहे कि “इस नौका में भरे हुए पानी को तुम हाथ से, पैर से, भाजन से या पात्र से, उलीच कर बाहर नीकाल दो। परन्तु साधु नाविक के इस वचन को स्वीकार न करे, वह मौन होकर बैठा रहे। यदि नाविक नौकारूढ़ साधु से यह कहे कि नाव में हुए इस छिद्र को तो तुम अपने हाथ से, पैर से, भुजा से, जंघा से, पेट से, सिर से या शरीर से, अथवा नौका के जल नीकालने वाले उपकरणों से, वस्त्र से, मिट्टी से, कुशपत्र से, तृणविशेष से बन्द कर दो, रोक दो। साधु नाविक के इस कथन को स्वीकार न करके मौन धारण करके बैठा रहे। वह साधु या साध्वी नौका में छिद्र से पानी आता हुआ देखकर, नौका को उत्तरोत्तर जल से परिपूर्ण होती देखकर, नाविक के पास जाकर यों न कहे कि तुम्हारी इस नौका में पानी आ रहा है, उत्तरोत्तर नौका जल से परिपूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 81
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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