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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३७६ गृहस्थ के यहाँ पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का पानी जाने कि गृहस्थ ने प्रासुक जल को व्यवधान रहित सचित्त पृथ्वी पर यावत् मकड़ी के जालों से युक्त पदार्थ पर रखा है, अथवा सचित्त पदार्थ से युक्त बर्तन से नीकालकर रखा है। असंयत गृहस्थ भिक्षु को देने के उद्देश्य से सचित्त जल टपकते हुए अथवा जरा-से गीले हाथों से, सचित्त पृथ्वी आदि से युक्त बर्तन से, या प्रासुक जल के साथ सचित्त उदक मिलाकर लाकर दे तो उस प्रकार के पानक को अप्रासुक और अनैषणीय मानकर साधु उसे मिलने पर भी ग्रहण न करे। यह (आहार-पानी की गवेषणा का विवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि आचार सम्बन्धी) समग्रता है। __ अध्ययन-१- उद्देशक-८ सूत्र-३७७ गृहस्थ के घर में पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि इस प्रकार का पानक जाने, जैसे कि आम्रफल का पानी, अंबाड़क, कपित्थ, बीजौरे, द्राक्षा, दाडिम, खजूर, नारियल, करीर, बेर, आँवले अथवा इमली का पानी, इसी प्रकार का अन्य पानी है, जो कि गुठली सहित है, छाल आदि सहित है, या बीज सहित है और कोई असंयत गृहस्थ साधु के निमित्त बाँस की छलनी से, वस्त्र से, एक बार या बार-बार मसल कर, छानता है और लाकर देने लगता है, तो साधु-साध्वी इस प्रकार के पानक को अप्रासुक और अनैषणीय मानकर मिलने पर भी न ले। सूत्र - ३७८ वह भिक्षु या भिक्षुणी आहार प्राप्ति के लिए जाते पथिक-गृहों में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या परिव्राजकों के मठों में अन्न की, पेय पदार्थ की, तथा कस्तूरी इत्र आदि सुगन्धित पदार्थों की सौरभ सूंघ कर उस सुगन्ध के आस्वादन की कामना से उसमें मूर्छित, गृद्ध, ग्रस्त एवं आसक्त होकर-उस गन्ध की सुवास न ले। सूत्र - ३७९ गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ कमलकन्द, पालाशकन्द, सरसों की बाल तथा अन्य इसी प्रकार का कच्चा कन्द है, जो शस्त्र-परिणत नहीं हुआ है, ऐसे कन्द आदि को अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे । यदि यह जाने के वहाँ पिप्पली, पिप्पली का चूर्ण, मिर्च या मिर्च का चूर्ण, अदरक या अदरक का चूर्ण तथा इसी प्रकार का अन्य कोई पदार्थ या चूर्ण, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। गृहस्थ के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि वहाँ ये जाने कि आम्र प्रलम्ब-फल, अम्बाडग-फल, ताल-प्रलम्ब-फल, सुरभि-प्रलम्ब-फल, शल्यकी का प्रलम्ब-फल तथा इसी प्रकार का अन्य प्रलम्ब फल का प्रकार, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासुक और अनैषणीय समझकर मिलने पर ग्रहण न करे। __गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी अगर वहाँ जाने-कि पीपल का प्रवाल, वड़ का प्रवाल, पाकड़ वृक्ष का प्रवाल, नन्दीवृक्ष का प्रवाल, शल्यकी वृक्ष का प्रवाल, या अन्य उस प्रकार का कोई प्रवाल है, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो ऐसे प्रवाल को अप्रासुक और अनैषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। साधु या साध्वी यदि जाने-कि शलाद फल, कपित्थ फल, अनार फल, बेल फल अथवा अन्य इसी प्रकार का कोमल फल कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि जाने, कि-उदुम्बर का चूर्ण वड़ का चूर्ण, पाकड़ का चूर्ण, पीपल का चूर्ण अथवा अन्य इसी प्रकार का चूर्ण है, जो कच्चा व थोड़ा पीसा हुआ है और जिसका योनि-बीज विध्वस्त नहीं हुआ है, तो उसे अप्रासुक और अनैषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले। सूत्र - ३८० साधु या साध्वी यदि जाने कि वहाँ भाजी है; सड़ी हुई खली है, मधु, मद्य, घृत और मद्य के नीचे का कीट बहुत पुराना है तो उन्हें ग्रहण न करे, क्योंकि उनमें प्राणी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें प्राणी जन्मते हैं, संवर्धित होते हैं, मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 63
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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