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आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३५१
वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि अमुक गाँव, नगर यावत् राजधानी में संखड़ि है । तो संखड़ि को (संयम को खण्डित करने वाली जानकर) उस गाँव यावत् राजधानी में संखड़ि की प्रतिज्ञा से जाने का विचार भी न करे । केवली भगवान कहते हैं-यह अशुभ कर्मों के बन्ध का कारण है।
चरकादि भिक्षाचरों की भीड़ से भरी-आकीर्ण-और हीन-अवमा ऐसी संखड़ि में प्रविष्ट होने से (निम्नोक्त दोषों के उत्पन्न होने की सम्भावना है-) सर्वप्रथम पैर से पैर-टकराएंगे या हाथ से हाथ संचालित होंगे; पात्र से पात्र रगड़ खाएगा, सिर से सिर का स्पर्श होकर टकराएगा अथवा शरीर से शरीर का संघर्षण होगा, डण्डे, हड्डी, मुठ्ठी, ढेलापथ्थर या खप्पर से एक दूसरे पर प्रहार होना भी संभव है। वे परस्पर सचित्त, ठण्डा पानी भी छींट सकते हैं, सचित्त मिट्टी भी फेंक सकते हैं । वहाँ अनैषणीय आहार भी उपभोग करना पड़ सकता है तथा दूसरों को दिए जाने वाले आहार को बीच में से लेना भी पड़ सकता है। इसलिए वह संयमी निर्ग्रन्थ इस प्रकार की जनाकीर्ण एवं हीन संखड़ि में संखड़ि के संकल्प से जाने का बिलकुल विचार न करे। सूत्र-३५२
भिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि यह आहार एषणीय है या अनैषणीय ? यदि उसका चित्त विचिकित्सा युक्त हो, उसकी लेश्या अशुद्ध आहार की रही हो, तो वैसे आहार मिलने पर भी ग्रहण न करे सूत्र-३५३
जो भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होना चाहता है, वह अपने सब धर्मोपकरण लेकर आहार-प्राप्ति उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रवेश करे या नीकले।
साधु या साध्वी बाहर मलोत्सर्गभूमि या स्वाध्यायभूमि में नीकलते या प्रवेश समय अपने सभी धर्मोपकरण लेकर वहाँ से नीकले या प्रवेश करे। एक ग्राम से दूसरे ग्राम विचरण करते समय अपने सब धर्मोपकरण साथ में लेकर ग्रामानुग्राम विहार करे। सूत्र-३५४
यदि वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि बहुत बड़े क्षेत्र में वर्षा बरसती है, विशाल प्रदेश में अन्धकार रूप धुंध पड़ती दिखाई दे रही है, अथवा महावायु से धूल उड़ती दिखाई देती है, तिरछे उड़ने वाले या त्रस प्राणी एक साथ मिलकर गिरते दिखाई दे रहे हैं, तो वह ऐसा जानकर सब धर्मोपकरण साथ में लेकर आहार के निमित्त गृहस्थ के घर में न प्रवेश करे और न नीकले । इसी प्रकार बाहर विहार भूमि या विचार भूमि में भी निष्क्रमण या प्रवेश न करे; न ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम को विहार करे । सूत्र-३५५
भिक्षु एवं भिक्षुणी इन कुलों को जाने, जैसे कि चक्रवर्ती आदि क्षत्रियों के कुल, उनसे भिन्न अन्य राजाओं के कुल, कुराजाओं के कुल, राजभृत्य दण्डपाशिक आदि के कुल, राजा के मामा, भानजा आदि सम्बन्धीयों के कुल, इन कुलों के घर से, बाहर या भीतर जाते हुए, खड़े हुए या बैठे हुए, निमंत्रण किये जान पर या न किये जाने पर, वहाँ से प्राप्त होने वाले अशनादि आहार को ग्रहण न करे।
अध्ययन-१- उद्देशक-४ सूत्र-३५६
गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते समय भिक्षु या भिक्षुणी यह जो कि इस संखड़ि के प्रारम्भ में माँस या मत्स्य पकाया जा रहा है, अथवा माँस या मत्स्य छीलकर सूखाया जा रहा है; विवाहोत्तर काल में नववधू के प्रवेश या पितृगृह में वधू के पुनः प्रवेश के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है, या मृतक-सम्बन्धी भोज हो रहा है, अथवा परिजनों के सम्मानार्थ भोज हो रहा है । ऐसी संखड़ियों से भिक्षाचरों को भोजन लाते हुए देखकर संयम-शील भिक्षु को वहाँ भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए। क्योंकि वहाँ जाने में अनेक दोषों की सम्भावना है, जैसे कि ----
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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