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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३२४ वे कभी बेले, कभी तेले, कभी चौले कभी पंचौले के अनन्तर भोजन करते थे । भोजन प्रति प्रतिज्ञारहित होकर समाधि का प्रेक्षण करते थे। सूत्र- ३२५ वे भगवान महावीर (दोषों को) जानकर स्वयं पाप नहीं करते थे, दूसरों से भी पाप नहीं करवाते थे और न पाप करने वालों का अनुमोदन करते थे। सूत्र-३२६ ग्राम या नगर में प्रवेश करके दूसरे के लिए बने हुए भोजन की एषणा करते थे । सुविशुद्ध आहार ग्रहण करके भगवान आयतयोग से उसका सेवन करते थे। सूत्र-३२७ भिक्षाटन के समय, रास्ते में क्षुधा से पीड़ित कौओं तथा पानी पीने के लिए आतुर अन्य प्राणियों को लगातार बैठे हुए देखकरसूत्र - ३२८ अथवा ब्राह्मण, श्रमण, गाँव के भिखारी या अतिथि, चाण्डाल, बिल्ली या कुत्ते को मार्ग में बैठा देखकरसूत्र- ३२९ उनकी आजीविका विच्छेद न हो, तथा उनके मन में अप्रीति या अप्रतीति उत्पन्न न हो, इसे ध्यान में रखकर भगवान धीरे-धीरे चलते थे। किसीको जरा-सा भी त्रास न हो, इसलिए हिंसा न करते हुए आहार की गवेषणा करते थे। सूत्र-३३० भोजन सूखा हो, अथवा ठंडा हो, या पुराना उड़द हो, पुराने धान को ओदन हो या पुराना सत्तु हो, या जौ से बना हुआ आहार हो, पर्याप्त एवं अच्छे आहार के मिलने या न मिलने पर इन सब में संयमनिष्ठ भगवान राग-द्वेष नहीं करते थे। सूत्र-३३१ भगवान महावीर उकडू आदि आसनों में स्थित होकर ध्यान करते थे। ऊंचे, नीचे और तिरछे लोक में स्थित द्रव्यपर्याय को ध्यान का विषय बनाते थे। वे असम्बद्ध बातों से दूर रहकर आत्म-समाधि में ही केन्द्रित रहते थे। सूत्र-३३२ __ भगवान क्रोधादि कषायों को शान्त करके, आसक्ति को त्यागकर, शब्द और रूप के प्रति अमूर्च्छित रहकर ध्यान करते थे। छद्मस्थ अवस्था में सदनुष्ठान में पराक्रम करते हुए उन्होंने एक बार भी प्रमाद नहीं किया। सूत्र-३३३ आत्म-शुद्धि के द्वारा भगवान ने स्वयमेव आयतयोग को प्राप्त कर लिया और उनके कषाय उपशान्त हो गए उन्होंने जीवन पर्यन्त माया से रहित तथा समिति-गुप्ति से युक्त होकर साधना की। सूत्र-३३४ किसी प्रतिज्ञारहित ज्ञानी महामाहन भगवानने अनेकबार इस विधि का आचरण किया, उनके द्वारा आचरित एवं उपदिष्ट विधि का अन्य साधक भी अपने आत्म-विकास के लिए इसी प्रकार आचरण करते थे। ऐसा मैं कहता हूँ अध्ययन-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण आचार सूत्र आगम-१ के श्रुतस्कन्ध-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 51
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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