SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र १, अंगसूत्र - १, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/ चूलिका/अध्ययन / उद्देश / सूत्रांक तब तक तो कुछ लोग उस गाँव से नीकलकर भगवान को रोक लेते, उन पर प्रहार करते और कहते - 'यहाँ से आगे कहीं दूर चले जाओ ।' सूत्र - ३१३ उस लाढ़ देश में बहुत से लोग डण्डे, मुक्के अथवा भाले आदि से या फिर मिट्टी के ढेले या खप्पर से मारते. फिर मारो मारो कहकर होहल्ला मचाते थे। सूत्र - ३१४ उन अनार्यों ने पहले एक बार ध्यानस्थ खड़े भगवान के शरीर को पकड़कर माँस काट लिया था । उन्हें परीषहों से पीड़ित करते थे, कभी-कभी उन पर धूल फेंकते थे। सूत्र - ३१५ कुछ दुष्ट लोग ध्यानस्थ भगवान को ऊंचा उठाकर नीचे गिरा देते थे, कुछ लोग आसन से दूर धकेल देते थे, किन्तु भगवान शरीर का व्युत्सर्ग किये हुए प्रणबद्ध, कष्टसहिष्णु प्रतिज्ञा से युक्त थे । अतएव वे इन परीषहों से विचलित नहीं होते थे। सूत्र - ३१६ जैसे कवच पहना हुआ योद्धा युद्ध के मोर्चे पर शस्त्रों से विद्ध होने पर भी विचलित नहीं होता, वैसे ही संवर का कवच पहने हुए भगवान महावीर लाढ़ादि देश में परीषहसेना से पीड़ित होने पर भी कठोरतम कष्टों का सामना करते हुए मेरुपर्वत की तरह ध्यान में निश्चल रहकर मोक्षपथ में पराक्रम करते थे। सूत्र - ३१७ (स्थान और आसन के सम्बन्ध में) प्रतिज्ञा से मुक्त मतिमान, महामाहन भगवान महावीर ने इस विधि का अनेक बार आचरण किया; उनके द्वारा आचरित एवं उपदिष्ट विधि का अन्य साधक भी इसी प्रकार आचरण करते हैं। ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन-९ उद्देशक-४ सूत्र ३९८, ३१९ भगवान रोगों से आक्रान्त न होने पर भी अवमौदर्य तप करते थे । वे रोग से स्पृष्ट हों या अस्पृष्ट, चिकित्सा में रुचि नहीं रखते थे। ये शरीर को आत्मा से अन्य जानकर विरेचन, वमन, तैलमर्दन, स्नान और मर्दन आदि परिकर्म नहीं करते थे, तथा दन्तप्रक्षालन भी नहीं करते थे । सूत्र - ३२० महामाहन भगवान विरत होकर विचरण करते थे । वे बहुत बुरा नहीं बोलते थे । कभी-कभी भगवान शिशिर ऋतु में स्थिर होकर ध्यान करते थे । सूत्र - ३२१ भगवान ग्रीष्म ऋतु में आतापना लेते थे । उकडू आसन से सूर्य के ताप के सामने मुख करके बैठते थे । और वे प्रायः रूखे आहार को दो कोद्रव व बेर आदि का चूर्ण तथा उड़द आदि से शरीर निर्वाह करते थे। सूत्र - ३२२ भगवान ने इन तीनों का सेवन करके आठ मास तक जीवन यापन किया। कभी-कभी भगवान ने अर्ध मास या मासभर तक पानी नहीं पिया । सूत्र - ३२३ उन्होंने कभी-कभी दो महीने से अधिक तथा छह महीने तक भी पानी नहीं पिया । वे रातभर जागृत रहते, किन्तु मन में नींद लेने का संकल्प नहीं होता था। कभी-कभी वे वासी भोजन भी करते थे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( आचार)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद” Page 50
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy