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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३०१ हिमजन्य शीत-स्पर्श अत्यन्त दुःखदायी है, यह सोचकर कोई साधु संकल्प करते थे कि चादरों में घूस जाएंगे या काष्ठ जलाकर किवाड़ों को बन्द करके इस ठंड को सह सकेंगे, ऐसा भी कुछ साधु सोचते थे। सूत्र-३०२ किन्तु उस शिशिर ऋतु में भी भगवान ऐसा संकल्प नहीं करते । कभी-कभी रात्रि में भगवान उस मंडप से बाहर चले जाते, मुहूर्त्तभर ठहर फिर मंडप में आते । उस प्रकार भगवान शीतादि परीषह समभाव से सहन करने में समर्थ थे। सूत्र-३०३ मतिमान महामाहन महावीर ने इस विधि का आचरण किया जिस प्रकार अप्रतिबद्धविहारी भगवान ने बहुत बार इस विधि का पालन किया, उसी प्रकार अन्य साधु भी आत्म-विकासार्थ इस विधि का आचरण करते हैं - ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-९- उद्देशक-३ सूत्र-३०४ ___ भगवान घास का कठोर स्पर्श, शीत स्पर्श, गर्मी का स्पर्श, डाँस और मच्छरों का दंश; इन नाना प्रकार के दुःखद स्पर्शों को सदा सम्यक् प्रकार से सहते थे। सूत्र-३०५ दुर्गम लाढ़ देश के वज्रभूमि और सुम्ह भूमि नामक प्रदेश में उन्होंने बहुत ही तुच्छ वासस्थानों और कठिन आसनों का सेवन किया था। सूत्र - ३०६ लाढ़ देश के क्षेत्र में भगवान ने अनेक उपसर्ग सहे । वहाँ के बहुत से अनार्य लोग भगवान पर डण्डों आदि से प्रहार करते थे; भोजन भी प्रायः रूखा-सूखा ही मिलता था । वहाँ के शिकारी कुत्ते उन पर टूट पड़ते और काट खाते थे सूत्र-३०७ कुत्ते काटने लगते या भौंकते तो बहुत से लोग इस श्रमण को कुत्ते काँटे, उस नीयत से कुत्तों को बुलाते और छुछकार कर उनके पीछे लगा देते थे। सूत्र-३०८ उस जनपद में भगवान ने पुनः पुनः विचरण किया । उस जनपद में दूसरे श्रमण लाठी और नालिका लेकर विहार करते थे। सूत्र-३०९ वहाँ विचरण करने वाले श्रमणों को भी पहले कुत्ते पकड़ लेते, काट खाते या नोंच डालते । उस लाढ़ देश में विचरण करना बहुत ही दुष्कर था। सूत्र-३१० अनगार भगवान महावीर प्राणियों प्रति होनेवाले दण्ड का परित्याग और अपने शरीर प्रति ममत्व का व्युत्सर्ग करके (विचरण करते थे) अतः भगवान उन ग्राम्यजनों के काँटों समान तीखे वचनों को (निर्जरा हेतु सहन) करते थे। सूत्र -३११ हाथी जैसे युद्ध के मोर्चे पर (विद्ध होने पर भी पीछे नहीं हटता) युद्ध का पार पा जाता है, वैसे ही भगवान महावीर उस लाढ़ देशमें परीषह-सेना को जीतकर पारगामी हुए । कभी-कभी लाढ़ देशमें उन्हें अरण्यमें भी रहना पड़ा सूत्र-३१२ आवश्यकतावश निवास या आहार के लिए वे ग्राम की ओर जाते थे । वे ग्राम के निकट पहुँचते, न पहुँचते, मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 49
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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