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आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक बताएं, जिनका सेवन भगवान ने किया था। सूत्र- २८९
। भगवान कभी सूने खण्डहरों में, कभी सभाओं, प्याऊओं, पण्य-शालाओं में निवास करते थे । अथवा कभी लुहार, सुथार, सुनार आदि के कर्मस्थानों में और पलालपुँज के मंच के नीचे उनका निवास होता था। सूत्र - २९०
भगवान कभी यात्रीगृह में, आरामगृह में, गाँव या नगर में अथवा कभी श्मशान में, कभी शून्यगृह में तो कभी वृक्ष के नीचे ही ठहर जाते थे। सूत्र-२९१
त्रिजगत्वेत्ता मुनीश्वर इन वासस्थानोंमें साधना काल के बारह वर्ष, छह महीने, पन्द्रह दिनों में शान्त और सम्यक्त्वयुक्त मन से रहे । वे रात-दिन प्रत्येक प्रवृत्ति में यतनाशील रहते थे तथा अप्रमत्त और समाहित अवस्था में ध्यान करते थे। सूत्र-२९२
भगवान निद्रा भी बहुत नहीं लेते थे। वे खड़े होकर अपने आपको जगा लेते थे। (कभी जरा-सी नींद ले लेते किन्तु सोने के अभिप्राय से नहीं सोते थे ।) सूत्र - २९३
भगवान क्षणभर की निद्रा के बाद फिर जागृत होकर ध्यान में बैठ जाते थे। कभी-कभी रात में मुहर्त्तभर बाहर घूमकर पुनः ध्यान-लीन हो जाते थे। सूत्र- २९४,२९५
उन आवास में भगवान को अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग आते थे । कभी साँप और नेवला आदि प्राणी काट खाते, कभी गिद्ध आकर माँस नोचते ।
__कभी उन्हें चोर या पारदारिक आकर तंग करते, अथवा कभी ग्रामरक्षक उन्हें कष्ट देते, कभी कामासक्त स्त्रियाँ और कभी पुरुष उपसर्ग देते थे। सूत्र - २९६
___ भगवान ने इहलौकिक और पारलौकिक नाना प्रकार के भयंकर उपसर्ग सहन किये । वे अनेक प्रकार के सुगन्ध और दुर्गन्ध में तथा प्रिय और अप्रिय शब्दों में हर्ष-शोक रहित मध्यस्थ रहे। सूत्र - २९७
उन्होंने सदा समिति युक्त होकर अनेक प्रकार के स्पर्शों को सहन किया । वे अरति और रति को शांत कर देते थे । वे महामाहन महावीर बहुत ही कम बोलते थे। सूत्र - २९८
कुछ लोग आकर पूछते- तुम कौन हो ? यहाँ क्यों खड़े हो ?' कभी अकेले घूमने वाले लोग रात में आकर पूछते- तब भगवान कुछ नहीं बोलते, इससे रुष्ट होकर दुर्व्यवहार करते, फिर भी भगवान समाधि में लीन रहते, परन्तु प्रतिशोध लेने का विचार भी नहीं उठता। सूत्र - २९९
अन्तर में स्थित भगवान से पूछा - 'अन्दर कौन है ?' भगवान ने कहा - मैं भिक्षु हूँ। यदि वे क्रोधान्ध होते तब भगवान वहाँ से चले जाते । यह उनका उत्तम धर्म है । वे मौन रहकर ध्यान में लीन रहते थे। सूत्र-३००
शिशिरऋतु में ठण्डी हवा चलने पर कईं लोग काँपने लगते, उस ऋतु में हिमपात होने पर कुछ अनगार भी निर्वातस्थान ढूँढ़ते थे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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