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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-९- उपधानश्रुत उद्देशक-१ सूत्र - २६५ श्रमण भगवान महावीर ने दीक्षा लेकर जैसे विहारचर्या की, उस विषय में जैसा मैंने सूना है, वैसा मैं तुम्हें बताऊंगा। भगवान ने दीक्षा का अवसर जानकर हेमन्त ऋतु में प्रव्रजित हुए और तत्काल विहार कर गए। सूत्र-२६६ मैं हेमन्त ऋतु में वस्त्र से शरीर को नहीं ढकूँगा । वे इस प्रतिज्ञा का जीवनपर्यन्त पालन करने वाले और संसार या परीषहों के पारगामी बन गए थे । यह उनकी अनुधर्मिता ही थी। सूत्र - २६७ भौंरे आदि बहुत-से प्राणिगत आकर उनके शरीर पर चढ़ जाते और मँडराते रहते । वे रुष्ट होकर नाचने लगते यह क्रम चार मास से अधिक समय तक चलता रहा। सूत्र-२६८ भगवान ने तेरह महीनों तक वस्त्र का त्याग नहीं किया । फिर अनगार और त्यागी भगवान महावीर उस वस्त्र का परित्याग करके अचेलक हो गए। सूत्र - २६९ ___ भगवान एक-एक प्रहर तक तिरछी भीत पर आँखें गड़ा कर अन्तरात्मा में ध्यान करते थे। अतः उनकी आँखें देखकर भयभीत बनी बच्चों की मण्डली मारो-मारो कहकर चिल्लाती, बहुत से अन्य बच्चों को बुला लेती। सूत्र - २७० गृहस्थ और अन्यतीर्थिक साधु से संकुल स्थान में ठहरे हुए भगवान को देखकर, कामाकुल स्त्रियाँ वहाँ आकर प्रार्थना करती, किन्तु कर्मबन्ध का कारण जानकर सागारिक सेवन नहीं करते थे । अपनी अन्तरात्मा में प्रवेश कर ध्यान में लीन रहते। सूत्र - २७१ कभी गृहस्थोंसे युक्त स्थानमें भी वे उनमें घुलते-मिलते नहीं थे। वे उनका संसर्ग त्याग करके धर्मध्यानमें मग्न रहते । वे किसी के पूछने पर भी नहीं बोलते थे । अन्यत्र चले जाते, किन्तु अपने ध्यान का अतिक्रमण नहीं करते थे। सूत्र - २७२ वे अभिवादन करने वालों को आशीर्वचन नहीं कहते थे, और उन अनार्य देश आदि में डंडों से पीटने, फिर उनके बाल खींचने या अंग-भंग करने वाले अभागे अनार्य लोगों को वे शाप नहीं देते थे । भगवान की यह साधना अन्य साधकों के लिए सुगम नहीं थी। सूत्र - २७३ अत्यन्त दुःसह्य, तीखे वचनों की परवाह न करते हुए उन्हें सहन करने का पराक्रम करते थे । वे आख्यायिका, नृत्य, गीत, युद्ध आदि में रस नहीं लेते थे। सूत्र - २७४ परस्पर कामोत्तेजक बातों में आसक्त लोगों को ज्ञातपुत्र भगवान महावीर हर्षशोक से रहित होकर देखते थे। वे इन दुर्दमनीय को स्मरण न करते हए विचरते थे। सूत्र - २७५ (माता-पिता के स्वर्गवास के बाद) भगवान ने दो वर्ष से कुछ अधिक समय तक गृहवास में रहते हुए भी सचित्त जल का उपभोग नहीं किया । वे एकत्वभावना से ओतप्रोत रहते थे, उन्होंने क्रोध-ज्वाला को शान्त कर लिया था, वे सम्यग्ज्ञान-दर्शन को हस्तगत कर चुके थे और शान्तचित्त हो गए थे। फिर अभिनिष्क्रमण किया। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 46
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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