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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक विक्रिया द्वारा निर्माण किया । उस देवच्छंदक के ठीक मध्य-भाग में पादपीठ सहित एक विशाल सिंहासन की विक्रिया की, जो नाना मणि-स्वर्ण-रत्न आदि की रचना से चित्र-विचित्र, शुभ, सुन्दर और रम्य रूप वाला था । फिर जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वह वहाँ आया । उसने भगवान की तीन बार आदक्षिण प्रदकिणा की, फिर वन्दन नमस्कार करके श्रमण भगवान महावीर को लेकर वह देवच्छन्दक के पास आया । तत्पश्चात् भगवान को धीरे-धीरे देवच्छन्दक में स्थित सिंहासन पर बिठाया और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रखा। यह सब करने के बाद इन्द्र ने भगवान के शरीर पर शतपाक, सहस्रपाक तेलों से मालिश की, तत्पश्चात् सुगन्धित काषाय द्रव्यों से उनके शरीर पर उबटन किया फिर शुद्ध स्वच्छ जल से भगवान को स्नान कराया । बाद उनके शरीर पर एक लाख के मूल्य वाले तीन पट को लपेट कर साधे हुए सरस गोशीर्ष रक्त चन्दन का लेपन किया। फिर भगवान को, नाक से नीकलने वाली जरा-सी श्वास-वायु से उड़ने वाला, श्रेष्ठ नगर के व्यावसायिक पत्तन में बना हुआ, कुशल मनुष्यों द्वारा प्रशंसित, अश्व के मुँह की लार के समान सफेद और मनोहर चतुर शिल्पाचार्यों द्वारा सोने के तार से विभूषित और हंस के समान श्वेत वस्त्रयुगल पहनाया । तदनन्तर उन्हें हार, अर्द्धहार, वक्षस्थल का सुन्दर आभूषण, एकावली, लटकती हुई मालाएं, कटिसूत्र, मुकुट और रत्नों की मालाएं पहनाईं । ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम और संघातिम-पुष्पमालाओं से कल्पवृक्ष की तरह सुसज्जित किया। उसके बाद इन्द्र ने दुबारा पुनः वैक्रियसमुद्घात किया और उससे तत्काल चन्द्रप्रभा नाम की एक विराट सहस्रवाहिनी शिबिका का निर्माण किया । वह शिबिका ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, पक्षिगण, बन्दर, हाथी, रुरु, सरभ, चमरी गाय, शार्दूलसिंह आदि जीवों तथा वनलताओं से चित्रित थी । उस पर अनेक विद्याधरों के जोड़े यंत्रयोग से अंकित थे । वह शिबिक सहस्त्र किरणों से सुशोभित सूर्य-ज्योति के समान देदीप्यमान थी, उसका चम-चमाता हुआ रूप भलीभाँति वर्णनीय था, सहस्त्र रूपों में भी उसका आकलन नहीं किया जा सकता था, उसका तेज नेत्रों को चकाचौंध कर देने वाला था । उसमें मोती और मुक्ताजाल पिरोये हुए थे। सोने के बने हुए श्रेष्ठ कन्दु-काकार आभूषण से युक्त लटकती हुई मोतियों की माला उस पर शोभायमान हो रही थी। हार, अर्द्धहार आदि आभूषणों से सुशोभित थी, दर्शनीय थी, उस पर पद्मलता, अशोकलता, कुन्दलता आदि तथा अन्य अनेक वनमालाएं चित्रित थीं । शुभ, मनोहर, कमनीय रूप वाली पंचरंगी अनेक मणियों, घण्टा एवं पताकाओं से उसका अग्रशिखर परिमण्डित था । वह अपने आप में शुभ, सुन्दर और अभिरूप, प्रासादीय, दर्शनीय और अति सुन्दर थी। सूत्र- ५२१ जरा-मरण से विमुक्त जिनवर महावीर के लिए शिबिका लाई गई, जो जल और स्थल पर उत्पन्न होने वाले दिव्यपुष्पों और देव निर्मित पुष्पमालाओं से युक्त थी। सूत्र-५२२ उस शिबिका के मध्य में दिव्य तथा जिनवर के लिए श्रेष्ठ रत्नों की रूपराशि से चर्चित तथा पादपीठ से युक्त महामूल्यवान् सिंहासन बनाया गया था। सूत्र- ५२३ उस समय भगवान महावीर श्रेष्ठ आभूषण धारण किये हुए थे, यथास्थान दिव्य माला और मुकुट पहने हुए थे, उन्हें क्षौम वस्त्र पहनाए थे, जिसका मूल्य एक लक्ष स्वर्णमुद्रा था। इन सबसे भगवान का शरीर देदीप्यमान हो रहा था। सूत्र- ५२४ उस समय प्रशस्त अध्यवसाय से, षष्ठ भक्त प्रत्याख्यान की तपश्चर्या से युक्त शुभ लेश्याओं से विशुद्ध भगवान उत्तम शिबिका में बिराजमान हुए। सूत्र- ५२५ जब भगवान शिबिका में स्थापित सिंहासन पर बिराजमान हो गए, तब शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र उसके दोनों ओर खड़े होकर मणि-रत्नादि से चित्र-विचित्र हत्थे-डंडे वाले चामर भगवान पर ढुलाने लगे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 116
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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