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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने आरोग्यसम्पन्न श्रमण भगवान महावीर को सुखपूर्वक जन्म दिया, उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों ने श्रमण भगवान महावीर का कौतुक मंगल, शुचिकर्म तथा तीर्थंकराभिषेक किया। जब से श्रमण भगवान महावीर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में आए, तभी से उस कुल में प्रचुर मात्रा में चाँदी, सोना, धन, धान्य, माणिक्य, मोती, शंख, शिला और प्रवाल (मूंगा) आदि की अत्यंत अभिवृद्धि होने लगी। तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के माता-पिता ने भगवान महावीर के जन्म के दस दिन व्यतीत हो जाने के बाद ग्यारहवे दिन अशुचि निवारण करके शुचीभूत होकर, प्रचुर मात्रा में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ बनवाए उन्होंने अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धी-वर्ग को आमंत्रित किया । उन्होंने बहुत-से शाक्य आदि श्रमणों, ब्राह्मणों, दरिद्रों, भिक्षाचरों, भिक्षाभोजी, शरीर पर भस्म रमाकर भिक्षा माँगने वालों आदि को भी भोजन कराया, उनके लिए भोजन सुरक्षित रखाया, कईं लोगों को भोजन दिया, याचकों में दान बाँटा । अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धीजन आदि को भोजन कराया । पश्चात् उनके समक्ष नामकरण के सम्बन्ध में कहा-जिस दिन से यह बालक त्रिशलादेवी की कुक्षि में गर्भ रूप में आया, उसी दिन से हमारे कुल में प्रचुर मात्रा में चाँदी, सोना, धन, धान्य, माणिक, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि पदार्थों की अतीव अभिवृद्धि हो रही है । अतः इस कुमार का गुण -सम्पन्न नाम वर्द्धमान हो। जन्म के बाद श्रमण भगवान महावीर का लालन-पालन पाँच धाय माताओं द्वारा होने लगा । जैसे किक्षीरधात्री, मज्जनधात्री, मंडनधात्री, क्रीड़ाधात्री, और अंकधात्री । वे इस प्रकार एक गोद से दूसरी गोद में संहृत होते हुए एवं मणिमण्डित रमणीय आँगन में (खेलते हुए) पर्वतीय गुफा में स्थित चम्पक वृक्ष की तरह कुमार वर्द्धमान क्रमशः सुखपूर्वक बढ़ने लगे। भगवान महावीर बाल्यावस्था को पार कर युवावस्था में प्रविष्ट हुए । उनका परिणय सम्पन्न हुआ और वे मनुष्य सम्बन्धी उदार शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श से युक्त पाँच प्रकार के कामभोगों का उदासीनभाव से उपभोग करते हुए त्यागभाव पूर्वक विचरण करने लगे। सूत्र- ५११ श्रमण भगवान महावीर के पिता काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम कहे जाते हैं, सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी । श्रमण भगवान महावीर की माता वाशिष्ठ गोत्रीया थीं। उनके तीन नाम कहे जाते हैं-त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी । चाचा सुपार्श्व थे, जो काश्यप गौत्र के थे । ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्द्धन थे, जो काश्यप गोत्रीय थे। बड़ी बहन सुदर्शना थी, जो काश्यप गोत्र की थी। पत्नी यशोदा थी, जो कौण्डिन्य गोत्र की थी। पुत्री काश्यप गोत्र की थी उसके दो नाम इस प्रकार कहे जाते हैं, जैसे कि-१. अनोज्जा, (अनवद्या) और २. प्रियदर्शना । श्रमण भगवंत महावीर की दौहित्री कौशिक गोत्र की थी। उसके दो नाम इस प्रकार कहे जाते हैं, जैसे कि-१. शेषवती तथा २. यशस्वती। सूत्र- ५१२ श्रमण भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, दोनों श्रावक-धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक-धर्म का पालन करके षड्जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्मनिन्दा, आत्मगर्दा एवं पाप दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार करके, कुश के संस्तारक पर आरूढ़ होकर भक्तप्रत्याख्यान नामक अनशन स्वीकार किया । आहार-पानी का प्रत्याख्यान करके अन्तिम मारणान्तिक संलेखना से शरीर को सूखा दिया । फिर कालधर्म का अवसर आने पर आयुष्य पूर्ण करके उस शरीर को छोड़कर अच्युतकल्प नामक देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुए। तदनन्तर देव सम्बन्धी आयु, भव, (जन्म) और स्थिति का क्षय होने पर वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में चरम श्वासोच्छ्वास द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिवृत्त होंगे और वे सब दुःखों का अन्त करेंगे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 114
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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