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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्रं ॥ ७९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir दोवारिय - अमच्च - चेड - पीढमद्द - नगर-निगम - सिट्टि - सेणावइ - सत्थवाह दूअ - संधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए इव गहगणदिप्पंतरिक्खतारागणाण मज्झे ससिव पिअदंसणे, नरवई, नरिंदे, नरवसहे, नरसीहे अब्भहिअरायतेअलच्छीए दिप्पमाणे मज्जणघराओ डिनिक्खमइ ॥ ६२ ॥ मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता । अनेकगणानां क्षत्रियसमूहानां नायकाः, दण्डनायकाः, राज्येश्वराः, कोट्टपालाः, मडम्बस्य अधिपाः, कुटुम्बस्य अधिपाः, कुटुम्बस्य श्रीगरण- देवगरण - यमगरण-सामन्त महासामन्त-मण्डलीक - महामण्डलीक - चउरासीयचउद्दीय मुकुटबद्ध - सन्धिपाल - दूत पाल - सन्धिविग्रहि - राजविग्रहि- अमात्य - महामात्य श्रेष्ठि- सार्थवाह-व्यवहारिक-अङ्गरक्षक- पुरोहित-वृत्तिनायक वही वाहक - थईयायत पटुपडियायत- टाटकमालि-इन्द्रजालि-फूल - मालि- धनुर्वादी मन्त्रवादि - ज्योतिर्वादि-तन्त्रवादि अनेकदण्डधर-धनुर्धर - खङ्गधर-छत्रघर - चामरघर - पताकाघर - नेजाघर - दीपधर - पुस्तकधर - झारीधर-ताम्बूलधर-प्रतिहार - शय्यापालक - गजपालक अश्वपालक - अङ्गमर्दकआरक्षक- मितबोला-कथाबोला- सत्यबोला-गुणबोला- समस्याबोला - फारसीबोला- व्याकरणबोला-तर्कबोलासाहित्यबन्धक - लक्षणबन्धक - छन्दबन्धक - अलंकारबन्धक - नाटकबन्धकेत्यादिपरिवारेण परिवृतो राजा सिद्धार्थों For Private and Personal Use Only कल्पद्रुम कलिका वृतियुक्तं. व्याख्या. ४ ॥ ७९ ॥
SR No.034665
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorLakshmivallabh Upadhyay
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1918
Total Pages577
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size81 MB
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