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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुव्वारुहिते य समीहिते य किं छुमती ण खलु अण्णं है। तम्हा जं खलु उचितं, तं तु पमाणं व इतरं तु ||1|| बालगपुच्छादीहि, णातुं आदरमणादरेहिं च / / जं जोगं तं गेण्हति, दन्चपमाणं च जाणेज्जा // 2 // सूत्रम् २५८-तथ अग्छंतस कतायि वरिसं न सब ठाएज्जा ताथ कि काय ! कावा मेरा ! “कप्पति से वियर्ड भो-चा" “बियर्ड' उग्गमादिद्धं पगायतं सह सरीरण पारगिता वरिसते वि उयस्सयं एति / तस्य रसते बहू दोसा एगस्स आयपरोभयसमुत्था दोसा, साहू व अद्दा हो जा // मूत्रम् २५९-२६०-२६१--प्रस्थ वि वियडरुखमुलेसु कहं अच्छितव्य ? " तत्थ णो कप्पति एगस्स णिगांधस्स एगाए य गिगंथोए"। कहं पगाणिओ ! संघाइल्लभो भन्मत्त दिओ रहितओ कारणिओ या / एवं णिग्गंथीण वि भायपरोभयसमुत्था दोसा संकादओ य भवंति / अह पंचमओ खुड्डओ वा खुड्डिया बा, कण्णं रहस्सं ण भवति / तत्थ वि अन्छंतो अण्णेसि धुवकम्मियादीणं संलोए 'सपडिदुबारे' सपत्तिदुवारं सांगहाण वा दुवारे / खुडतो साधूणं, संजतीण खुड्डिया / साधू उग्मागेणं दो, संजतीओ तिणि चत्तारि पंच वा / एवं गार्गहिं वि // मूत्रम 262- पडि. णतो' ण केणयि वृत्तो-- मम आणेम्जासि, अहं या तब ६१णेस्सामि, ण कप्पति / कह ! अच्छति ति गहित, सो वि तोनियमोअधियं गहितं, भुंजते गेलप्णदोसा, पन्टिवेन्ते बाउ-हरित-विराहणा / मृत्रम् २६३-२६४-वासावासं० 'से' इति स भावांस्तीर्थकरः 1 किमा' दोसमाह ! मयत उदगरस " पाणी पाणिलेहातो " / 'पाणी' पाणिरेय. 'पाणिलेहा' मारहा, सुचिरतरं तत्थ मायाता चिति / हो सत्रो / ‘णहसिंहा' महागलयं / उत्तरोदा दाहियाभो / भमुहरोमाई एस्थ विचिरं अन्ठति / / सूत्रम् 265.-" वासायासं०" / 'अट्ट सुहुमाई "ति सूक्ष्मत्यादल्पाधारस्याच 'अमिवखणं पुणो पुणो जतिब्वाणि मुत्तावदेसेणं पासितम्याणि चवखुणा, एतेहिं देहि वि जाणित्ता पासित्ता - परिहरितव्याणि // मूत्रम् २६६-पाणहमे 'पंचविहे ' पंचपगारे / एक्केके वक्षणे सहरससो भेदा, अण्णे य बहुप्पगारा संजोगा, ते सव्वे वि पंचसु समोतरति किष्हादिसु / णो चकबुफासं० जे णिग्गंथेगा सभिकखणं अभिवणे जत्थ टाण-सीयणागि चेतेति / 'आदाणं' गहणं निकलेबं वा करति // सूत्रम् २६७-पणतो' उल्ली चिरुगतो, तद्दन्यसमाणवण्णा जाहे य उत्पज्जति // सूत्रम् २६८–वायमुहुर्म ' मुहुमं जं बोहिचीय तंदुलकाणिया समाणगं // सूत्रम् २६९-हरियमुहुमं पुढविसरिस किण्हादिना चिरुन्गतं // सूत्रम् 270-- पुष्फममं अपाधारस्यात् , अथवा उठेतगं गहु साहगं उंबरगुप्फादि, अघवा पल्लवादिसरिस // भूत्रम् 271 --अंडमुहुम पंचबिई- ' उड्डसंदे' मधुमक्खियादीणं अंडगाणि, पिपीलिग!--मुई गंडाणि, उक्कलियंडे इतादिडगस्स, हलिया--घरतोलिया तीस अडगं, हलोहलिया-अहिलोडी सरडी For Private And Personal Use Only
SR No.034664
Book TitleKalpsutra
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorPunyavijay, Bechardas Doshi
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1952
Total Pages255
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & agam_kalpsutra
File Size5 MB
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