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प्रथम स्तबक ]
भाषानुवादसहिता
विषयगताज्ञानस्य स्वसमानाधिकरणबोधनाश्यत्वे । सिद्धे वृत्तेरान्निर्गमन पर्यवस्यतीत्यन्ये ॥ ११३ ॥ सामानाधिकरण्ये सत्येव तमः प्रकाशनाश्यमिति । दृष्टानुरोधतस्तन्निर्गमनं सिध्यतीत्येके ॥ ११४ ।।
स्मलाभज्ञाननिवर्त्यमिति तत्प्रयोजकस्य निरूपयितुं शक्यत्वेन तयोविरोधनिर्वाहो भवतीति तदर्थ वृत्तिनिर्गमापेक्षेति मतेन समाधत्ते--अत्रेति ॥ ११२ ।।
विषयगताज्ञानस्य लाघवात् स्वसमानाधिकरणज्ञाननिवर्त्यत्वसिद्धावर्थाद् वृत्ति. निर्गमः फलतीति मतान्तरमाह-विषयेति ॥ ११३ ।।
बाह्यप्रकाशस्य बाह्यतमोनिवर्तकत्वं सामानाधिकरण्ये सत्येव दृष्टमिति दृष्टानुरोधाद् वृत्तिनिर्गमः सिध्यतीति मतान्तरमाह-सामानाधिकरण्य इति ॥ ११४॥ कहा गया है, उसीसे निर्वाह होगा ? नहीं, नहीं होगा, क्योंकि ऐसा माननेपर परोक्ष ज्ञानसे भी विषयगत अज्ञानकी निवृत्तिका प्रसंग हो जायगा । वृत्तिका निर्गम माननेसे तो 'जो अज्ञान जिस पुरुषके प्रति जिस विषयका आवारक होता है, वह उसी पुरुषके तद्विषयक अज्ञानके आश्रयभूत चैतन्यके संसर्गसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानसे निवर्त्य होता है'-इस रीतिसे ज्ञानाज्ञानके विरोधके प्रयोजक नियमका निरूपण हो सकता है, अतः विरोधके निर्वाह के लिए वृत्तिका निर्गमन अपेक्षित है, इस मतसे समाधान किया ॥ ११२ ॥
इस विषयमें मतान्तर दर्शाते हैं-'विषयगता०' इत्यादिसे ।
जब विषयगत अज्ञान स्वसमानाधिकरण ज्ञानसे नष्ट होता है, ऐसा सिद्ध है, तब वृत्तिका निर्गमन अर्थात् ही पर्यवसित होता है, यों अन्य कहते हैं। तात्पर्य यह हुआ कि विषयगत अज्ञानकी निवृत्ति विषयगत ज्ञानसे ही होती है, ऐसा जब लाधवसे सिद्ध ही है, तब वृत्तिका विषयदेशमें निर्गमन जरूर मानना पड़ेगा, क्योंकि बहिनिर्गमनके बिना वृत्ति विषयदेशमें हो नहीं सकती, अतः वृत्तिनिर्गम अर्थात् सिद्ध होता है ॥ ११३ ॥ _ 'सामानाधिकरण्ये' इत्यादि । अन्धकारकी निवृत्ति अन्धकारसमानाधिकरण प्रकाशसे होती है, ऐसा व्यवहारमें दृष्ट है, उसके अनुरोधसे वृत्तिका निर्गम सिद्ध होता है अर्थात् जैसे बाह्य प्रकाश बाह्य अंधकारका निवर्तक सामानाधिकरण्यसे ही होता है, वैसे ही वृत्ति विषयगत अज्ञानकी निवृत्ति विषय देशमें जाकर ही करेगी, अतः वृत्तिका निर्गम सिद्ध होता है, ऐसा कई एक मानते हैं । ११४ ॥
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