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योगीन्द्र सदाशिवेन्द्र कब इस भूतलमें अवतीर्ण हुए ? इस विषयमें निश्चित तिथिका पता लगना तो असम्भव है। हां, अन्य प्रमाणोंसे यह निश्चित है कि वे आजसे लगभग २०० वर्ष पूर्व विद्यमान थे। सुना जाता है कि विजयरघुनाथ टोण्डामनको, जो सन् १७३० से १७६९ तक पडुकोट्टाह राज्यके शासक रहे, लगभग सन् १७३८ में पडुकोट्टाहके आसपास जंगलमें सहसा सदाशिवेन्द्र योगीन्द्रके दर्शन हुए थे। उक्त शासक बड़ा शिवभक्त और पुण्यात्मा था, अतः उसकी 'शिवज्ञानपूर्ण' नामसे प्रसिद्धि थी। उसने बड़ी भक्ति और श्रद्धाके साथ आठ वर्ष तक योगिराजकी सेवा की। उक्त राजाके विशुद्ध चरित्रसे योगिराज बड़े प्रसन्न हुए और बालूमें कुछ अक्षर लिखकर राजन् , तुम्हें यो व्यवहार करना चाहिए, इससे अतिरिक्त अन्य बातें तुम्हें गोपालकृष्णशास्त्री बतलावेंगे, यो इशारेसे उपदेश दिया। तदुपरान्त राजाको पता चला कि श्रीगोपालकृष्णशास्त्री कावेरी नदीके किनारे भिक्षाण्डार देशमें रहते हैं। राजाने बड़े समादरके साथ उन्हें सपरिवार अपने राज्यमें बुलाया
और एक ग्राम देकर अपना कुलगुरु बना लिया। उनके वंशज अब भी राजगुरु कहलाते हैं। ___ उक्त पडुकोट्टाह राज्यमें आजकल भी प्रतिवर्ष शारदानवरात्रमहोत्सव, विद्वत्सत्कार और दक्षिणामूर्तिपूजन आदि सदाशिवेन्द्रसरस्वती द्वारा निर्दिष्ट रीतिके अनुसार बड़े धूमधामसे मनाये जाते हैं। जिस बालूमें सदाशिवेन्द्रने राजाके उपदेशार्थ अक्षर लिखे थे, वह भी सुरक्षितरूपसे पेटीमें रक्खी है। पूजनीय पदार्थों में उसका प्रधान स्थान है। इससे निश्चित है कि सदाशिवेन्द्र अठारहवीं शताब्दीके आरम्भमें या सत्रहवीं शताब्दीके शेष भागमें उत्पन्न हुए थे।
योगिराज सदाशिवेन्द्रसरस्वतीने प्रस्तुत 'केसरवल्लीयुक्त सिद्धान्तकल्पवल्ली' ग्रन्थके अतिरिक्त निम्नलिखित प्रन्थोंकी रचना की थी• ब्रह्मतत्वप्रकाशिकानामक ब्रह्मसूत्रवृत्ति-सदाशिवेन्द्रविरचित ग्रन्थों में यह सूत्रवृत्ति वेदान्तजिज्ञासुओंके लिए प्रथमसोपानरूप एवं परमोपयोगिनी है। ब्रह्मसूत्रपर अनेक वृत्तियां हैं, पर इसकी सर्वश्रेष्ठता निर्विवाद है। इसमें संक्षेपतः पूर्वपक्ष और सिद्धान्तका निरूपण, सूत्रसंगति, अधिकरणसंगति, पादसंगति
आदि उपयोगी विषय बड़ी हृदयंगम रीतिसे निरूपित हैं। यह भगवान् श्रीशङ्कराचार्यके भाष्यके गूढ़ अर्थको प्रकट करती है, इसमें सन्देह नहीं है।
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