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वस्था में ही आख्यायिकाषष्टि, दयाशतक आदि ग्रन्थोंका निर्माण किया था और लोकोत्तर वाक्पटुतासे आत्मतत्त्वका एवं अपने पावनतम चरितसे धर्मतत्त्वत्का उपदेश देते हुए परम प्रख्याति प्राप्त कर ली थी । जिन्हें आज भी आस्तिक लोग 'अय्यावाल' उपाधि से विभूषित कर भक्ति और गौरव के साथ परमाचार्यों में स्थान देते हैं। तीसरे साथी थे - गोपालकृष्णशास्त्री । वे भी बुद्धिमत्ता में इनसे कुछ कम न थे । उन्होंने महाभाष्यपर बड़ी उत्तम टीका लिखी थी। उनकी ब्रह्मनिष्ठा, वैदिक कर्मोंका अनुष्ठान, ब्रह्मवर्चस, शम, दम आदि गुणगणोंसे मुग्ध होकर पडकोटा राज्यके नृपति टोण्डा मन उनकी शिष्यता प्राप्त कर साम्राज्य - लाभसे भी अधिक प्रसन्न हुए थे ।
ईश्वर के अंशभूत ये चारों महापुरुष आत्मतत्त्वके उपदेश द्वारा जगत् की दुःखनिवृत्तिके लिए भूमण्डलमें अवतीर्ण हुए थे । इन महात्माओंके अमृतमय सदुपदेशसे सैकड़ों शिष्य सहजमें दुर्ज्ञेय आत्मतत्त्वका ज्ञान प्राप्त कर देहाभिमान, विचैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा तथा सांसारिक दुःखदावानलसे विमुक्त होकर परमानन्दसमुद्र में निमग्न हो गये ।
यह तो पहले कहा ही जा चुका है कि हमारे चरितनायक श्रीसदाशिवेन्द्रको बाल्यावस्था में ही अनुपम पाण्डित्य प्राप्त हो गया था । उनके साथ शास्त्र चर्चा में बड़े बड़े आचार्य तक दंग रह जाते थे । उनका विवाह बाल्यावस्था में ही हो गया था । परिश्रमपूर्वक विद्योपार्जनमें ही बाल्यावस्था बीत चुकी थी। एक समयकी बात है कि भार्याके ऋतुमती होने का समाचार भेजकर घर के लोगोंने उन्हें बुला भेजा । माताकी आज्ञाको शिरोधार्य कर गुरुजनोंसे आज्ञा लेकर वे घरके लिए रवाना हुए। ऋतुस्नान के दिन वे घर पहुँचे । ब्राह्मणोंको भोजन आदि कराने में व्यग्र माताने बड़े स्नेहसे उनका अभिनन्दन किया । घरके सभी लोग उत्सवकी चहल-पहल से आनन्दित थे । स्त्रियाँ मङ्गलमय गीत गानेमें लीन थीं । घर और आँगन ब्राह्मणोंके आशीर्वादकी ध्वनिसे गूँज रहे थे । सदाशिवेन्द्रका भोजनकाल बीत चुका था, भूख और प्यास उन्हें सता रही थी । उस समय उनके मन में सूक्ष्मरूपसे यह विचारधारा उठी कि ब्रह्मवेत्ता लोग सच कहते हैं कि विवाह अनन्त दुःखों का घर है । इस समय यह बुभुक्षा जनित दुःख यद्यपि नगण्य-सा है फिर भी यह मेरे भावी अनेक दुःखोंकी परम्पराको सूचित -सा कर रहा है । उन्हें रह रह कर रात्रि - दिन वह विचारधारा उद्विग्न करने लगी । अन्ततोगत्वा उसने गार्हस्थ्य के प्रति उनकी द्वेषबुद्धिको दृढ़कर उनमें तीव्र वैराग्य उत्पन्न
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