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कृति कल्पवल्लीतुल्य प्रस्तुत सिद्धान्तकल्पवल्लीको संस्कृतटीका तथा भाषानुवादके साथ अद्वैतवेदान्तदर्शन-प्रेमी जनताके सन्मुख उपस्थित करते हमें परम आह्वाद हो रहा है।
महामहिमशाली योगिराज श्रीसदाशिवेन्द्रसरस्वतीने अपने जन्मसे कब किस प्रान्तको धन्य बनाया, उनके पुण्यमय अद्भुत चरित कैसे थे और उन्होंने कौन कौन ग्रन्थ रचे ऐसी जिज्ञासा होना सर्वसाधारण है। उसकी निवृत्तिके लिए संक्षेपमें ग्रन्थकारके पुण्यमय जीवनचरित, जीवनकाल और ग्रन्थों के विषयमें कुछ निवेदन कर देना अनुचित न होगा।
चराचरगुरु करुणासिन्धु आनन्दकन्द भगवान्की आज्ञासे इस पृथिवीतलमें अज्ञानतिमिरान्ध लोगोंके हृदयमें विद्यमान अज्ञानरूपी गाढ़ अन्धकारकी ज्ञानोपदेश द्वारा निवृत्ति करनेके लिए यदा कदा पुण्यमयचरित, सदाचारनिरत, परमेश्वरके अंशभूत विदितवेदितव्य अनेक महात्मा मनुष्यरूपसे अवतीर्ण होते हैं। उन महात्माओंमें हमारे चरितनायक प्रातःस्मरणीय दिगन्तविश्रान्तकीर्ति योगिरान श्रीसदाशिवेन्द्रसरस्वतीका प्रथम स्थान है। लगभग दो सौ वर्ष पूर्व योगिराज सदाशिवेन्द्रसरस्वतीने अपने जन्मसे चोल प्रान्तको अलङ्कृत किया था। वर्तमान करूर नगरके निकट उनका निवासस्थान था। योगिराजके माश्चर्यपूर्ण चरितोंको कौन नहीं जानता, आज भी दक्षिण भारतमें उनकी चरितचर्चा प्रतिदिन सजनोंकी रसनामें नाचती है। आस्तिक लोगोंपर असीम अनुग्रह करनेवाले श्रीशृङ्गेरीमठाधिपति श्रीशिवाभिनवसरस्वतीजी द्वारा स्तुतिरूपसे वर्णित उनके विशद आश्चर्यमय चरितोंका घर घर गान होता है ।
योगिराज सदाशिवेन्द्र बाल्यावस्थामें ही सम्पूर्ण विद्याओंमें निष्णात हो गये थे, अतएव गुरुजनोंकी इनके ऊपर प्रचुर कृपा रहती थी। इनका अध्ययन स्थान तिरुविशनल्लूर था। उस समय तिरुविशनल्लूर उस पान्तका विद्याकेन्द्र था। भनेक बड़े बड़े दिग्गज विद्वान् विद्याग्रहणमें अत्यन्त निपुण सैंकड़ों छात्रोंको विद्यादान करते थे।
श्रीयोगिराज ..सदाशिवेन्द्रसरस्वतीके सहाध्यायी छात्रों में प्रख्यातनामा रामभद्र दीक्षित अन्यतम थे । उन्होंने जानकीपरिणयनामक नाटकका असाधारण कौशलसे निर्माण कर दाक्षिणात्य कवियोंमें नाटक-निर्माणकी निपुणता नहीं है, इस अकीर्तिको घो डाला। उनके दूसरे सहाध्यायी थे वेस्टेंश । उनका दिव्य प्रभाव बाल्यावस्थामें ही सबपर विदित हो गया था। उन्होंने बाल्या
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