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८४ श्वेताम्बर तेरापंथ-मन समीक्षाः।
* R RRRRR------ ____ आगे चलकर उसी १६ वे पृष्ठमें लिखा गया है कि'पालीमें करीब १५ दिनके और ठहरे रहे, कोई बिहार नहीं किया, और न प्रश्नोंका उत्तर दिया ।'
प्रश्नोंके उत्तर तय्यार करके 'जैन शासन' में क्रमशः छापनेके लिये भेज भी दिये थे । क्यों कि अखबारके द्वारा ही जवाब देनेका निश्चय किया था। तिस पर भी, उन लोगोंको यह कहला भेजा कि-"अगर तुम्हें जल्दी जवाब चाहिये तो, एक पब्लिक सभा करो, जिसमें पालीके प्रतिष्ठित पंडित तथा राज्यके अमलदार लोग मध्यस्थ बनाए जाँय, और हमारे आचार्यमहाराजश्री तुम्हारे तेईस प्रश्नों के उत्तर दे दें।" लेकिन इन लोगोंने सभा करनेसे बिलकुल इन्कार किया। इस विषयमें उनके आए हुए रजिस्टर पत्र हमारे पास मौजूद हैं।
अन्तमें इतना ही कहना काफी है कि-इन लोगोंने, अपने ट्रेक्टमें मृषावादकी मात्रासे भरी हुई बातें प्रकाशित की हैं । इस लिये इनके ऊपर किसीको विश्वास नहीं रखना चाहिये । इन लोगोंका यह स्वभाव ही है कि-झूठी २ वानोंको प्रकाशित करके अपने ढाँचेको खडा रखना । परन्तु स्मरणमें रखना चाहिये कि-निर्मूल सो निर्मूल ही है । और निमूल वस्तु कभी ठहर नहीं सकती । अस्तु, इस विषयको अब यहाँ ही समाप्त किया जाता है । आशा है ये लोग बुद्धिमत्तासे विचार करके तत्त्वकी बातको ग्रहण करेंगे।
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