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वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
प्रतिमा पूजनेमें धर्म हम ही नहीं कहते हैं, समस्त तीर्थकर, गणधर, आचार्य, उपाध्याय तथा मुनिप्रवर कहते हैं । जब ऐसा ही है, तब तो तुम्हारे हिसाबसे उन सभीको, द्रव्यपूजा करनी कार्यरूप हो जायगी, परन्तु नहीं, वैसा नहीं है। ऊपर कहे मुताबिक जितने पदस्थ अथवा मुनिपद धारक हैं, उनको द्रव्यपूजाका अधिकार नहीं है। भावपूजा याने जो भक्ति है, वही करनेका अधिकार है। देखिये, प्रश्नव्याकरणके पृष्ठ ४१५ में इस तरहका पाठ है:
"अह केरिसए पुणाइ आराहए वयमिणं? जे से उवहिभत्तपाणादाणसंगहणकुसले अञ्चंतबालदुव्वलगिलाणवुमासखमणे पवत्तायरिय उवज्झाए सेहे साहम्मिए तवस्सीकुलगणसंघ चेइअहे निज्जरही वेयावच्च अणिस्सिअं दस विय बहुविहं करेइ ।”
उपयुक्त पाठमें 'जिन प्रतिमाकी भक्ति करता हुआ साधु निर्जराको करे ' ऐसा कहा है । उस नियमानुसार हम लोग यथाशक्ति प्रभुभक्तिका लाभ लेते हैं । जीवाभिगममें विजयदेवने प्रभुप्रतिमाके आगे १०८ काव्य करके प्रभुकी स्तुति की है । देखिये, वह पाठ पृष्ठ १९१ वे में इस तरह है:
___ “जिणवराणं अहसय विसुद्धगंथजुत्तेहिं महाचित्तेहिं अत्थजुत्तेहिं अपुणरुनेहिं संथुण संथुणइत्ता सत्तट्टपया उसरइ उसरइत्ता वामं जाणुं
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