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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ७७
R -7 उत्तर-बड़े आश्चर्यकी बात है कि प्रश्न पूछनेवालोंको यह भी समझमें नहीं आया की-द्रव्यपूजा करनेमें द्रव्यकी जरूरत होती है या नहीं। और जिसमें द्रव्यकी जरूरत रहती है, वह साधु कैसे कर सकता है ? फिर चाहे भले धर्मका ही हो । जिस कार्यमें द्रव्यकी आवश्यक्ता होती है, वह कार्य 'साधु नहीं कर सकते । क्योंकि, साधुके पास द्रव्यका अभाव ही रहता है। इसके सिवाय द्रव्यपूजा करने वालेको स्नानादि क्रिया करनेकी जरूरत रहती है। देखिये, भगवती सूत्रमें तुंगिया नगरीके श्रावक स्नान-पूजा करके भगवान्को वंदणा करनेको गये । वहाँ पूजाके समय स्नान क्रियाकी जरूरत पड़ी। जब साधुको स्नान करनेका, पुष्पादिको छूनेका अधिकार ही नहीं है, तो फिर कैसे प्रभुकी द्रव्यपूजा कर सकते हैं ? । प्रभुकी पूजामें पुष्पादि सचित्त वस्तुओंका उपयोग करना पड़ता है । देखिये, महाकल्पसूत्रका वह पाठ, जो पहिले प्रश्नके उत्तरमें दे दिया है। व्रतधारी श्रावकोंने प्रभुकी पूजा करते हुए कैसी २ वस्तुएं चढाई हैं ? साधुओंका अधिकार वैसी वस्तुओंको छूनेका ही नहीं है। जिसका जैसा अधिकार होता है, उससे वैसी ही क्रियाएं होतीहैं।
एक स्वाभाविक नियमको देखिये, जिसको जिस जगह फोडा होता है, वह उसी जगह पाटा बांधेगा। निरोग शरीर पर पाटा बांधनकी आवश्यक्ता नहीं रहती । वैसे मुनिओंकों छकायका कूटा बाकी नहीं हैं, इस लिये उनको द्रव्यपूजा करनेकी जरूरत नहीं। ____ धर्मके करनेमें कोई दोष नहीं है, खास धर्मके लिये घर छोडते हो ' यह तुम्हारा ( तेरापंथियोंका ) कथन तुम्हारी अज्ञानताका परिचय दे रहा है।
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