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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा |
अघरे गच्छेजा ? दंता गोयमा ! दिले दिये गच्छेजा । से भयवं जत्थ दिएण गच्छेजा, तओ किं पायच्छित्तं हवेज्जा ? गोयमा ! पमायं पडुच्च तहारूवं समगं वा मादल वा जो जिलधरं न गच्छेज्जा तओ छहं अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेज्जा । "
अर्थात् - हें भगवन् ! किसी जीवको दुःखित नहीं करनेवाला तथारूप श्रमण जिनमंदिरमें जाय ? हे गौतम ! हमेशां - प्रतिदिन जाय ।
हे भगवन् ! यदी वह हमेशां न जाय तो इससे, उसको प्रायश्चित्त लगे ?
हे गौतम ? यदि प्रमादका अवलंबन करके तथारूप श्रमण जिनमंदिरमें प्रतिदिन न जाय तो, उसको छट्ट ( दो उपवास ) अथवा द्वादश ( पांच उपवास) का प्रायश्चित्त लगे । पाठक देख सकते हैं कि - उपर्युक्त पाठमें खुद भगवान्ने जिनप्रतिमा के प्रतिदिन दर्शन करनेका कैसा हुकम फरमाया है । जो लोग जिनमूर्तिके दर्शन नहीं करते हैं, वे भगवान्की आज्ञाके विराधक हैं, ऐसा कहनेमें क्या किसी भी प्रकारकी अत्युक्ति कही जा सकती है ? । कदापि नहीं ।
प्रश्न - २३ समेगीजी साधुजी महाराज खुद धबपूजा की नही करते, जो ध्रुवपूजामें धर्म हो तो साधुको अवस्य करणा चाई साधुक धर्मका कांम करणेमें कोई दोस नही है, खास धर्मके वास्ते गर छोडते सो उनको तो हरबर्ग जीन प्रतिमाकी ध्रुवपूजा वो भगतीमे रेणा चायै कीउके आप प्रतिमा पूजणेंमे धर्म परूपते है ।
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