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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । ७५ R A K-- -
-- है। सीधा मोक्ष नहीं होता है, यह तो हम भी स्वीकार करते हैं। क्यों कि, देखिये, श्रावक पांचवे गुणस्थानकमें होनेसे बारहवे देवलोक पर्यन्त ही जा सकते हैं। और प्रतिमाकी द्रव्य पूजा करनेका अधिकार श्रावकोंका ही है । अत एव सीधा मोक्षका होना कहाँ रहा? हम पूछते हैं कि-पांचवा गुणस्थानकवाला श्रावक सामायिक-पौषध वगैरह करता है, तो इससे उसका सीधा मोक्ष तुम मानते हो ? जब उसका नहीं हो सकता है, तो फिर प्रतिमाकी पूजा करने वालेका क्यों कर हो सकता है? । इसमें कारण यह है कि-अकेले विनयसे, अकेले विवेकसे, अकेले ज्ञानसे, अकेले दर्शनसे तथा अकेले चारित्रसे भी सीधा मोक्ष नहीं हो सकता। परन्तु जिस निमित्तको ले करके सम्यक्त्व दृढ हुआ हो, वह मुक्तिका कारण गिना जाता है । फिर भले ही परंपरासे मुक्ति क्यों न हो ?। आर्द्रकुमारको प्रतिमाके दर्शनसे समकित हुआ, ऐसा सूयगडांगसूत्रकी नियुक्तिमें स्पष्ट पाठ है। नियुक्तिको माननेका प्रमाण नंदीसूत्र तथा भगवतीसूत्रके पचीसवे शतकमें पाठ है, जो पाठ प्रश्नोंके उपक्रममे देदिया है।
जिससे परंपरासे मुक्ति हो, ऐसे विनय-विवेक-ज्ञान दर्शन-चारित्र इत्यादि भी प्रमाण ही है । ज्ञान-दर्शन-चारित्र ये तीनोंके संयोगमें साक्षात् मुक्ति होती है । दर्शनकी निर्मलता भगवान्की आज्ञामें है । भगवान्ने प्रतिदिन प्रभुप्रतिमाके दर्शन नहीं करनेवाले साधु तथा श्रावकोंको प्रायश्चित्त दिख
लाया है। देखिये, नंदिसूत्रमें जिन महाकल्पसूत्रका नाम है, : उसी महाकल्पसूत्रमें इस तरहका पाठ है:
“से भयवं तहारूवं समणं वा माहणं वा चेइ.
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