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७४ श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । RRRRR***** पात्र रूप है । तो जरा-मरणादि जलते हुए लोकसे निस्तारित हुई मेरी आत्मा, हितकारी-सुखकारी-कल्याणकारी तथा परभवमें मुझको लाभकारी होगी।'
इत्यादि पाठसे गाथापतिके स्थानपर खुद हुआ। भांडके स्थानपर अपनी आत्माको स्थापित किया । तथा धनके स्थानपर ज्ञान-दर्शन-चारित्रको स्थापन किया । ऐसे उपमा उपमेयभाव करके उपनय उतारा है। वहाँ स्कंदकजीने आस्माको तारनेमें 'हियाए सुहाए ' इत्यादि शब्द कहे हैं। उसी तरह गाथापतिके पाठमें भी 'हिआए सुहाए' इ. त्यादि शब्द कहे हैं । उन दोनों जगह 'निःश्रेयस' का अर्थ मोक्ष है। परन्तु गाथापतिके पक्षमें 'निःश्रेयस' शब्दका अर्थ द्रव्य मोक्ष करना और स्कन्दकजीके पक्षमें भाव मोक्ष अर्थ करना । गाथापति उस भांडके देनेसे छूट गये तथा स्कंदकजी कर्मके देनेसे छूट गये।
__ वैसे ही शब्द सूर्याभदेवके भी हैं । इसके सिवाय जहाँ सूर्याभदेव, महावीर स्वामीको वंदणा करनेको गये, वहाँ भी 'हियाए' इत्यादि पाठ कहा है । उववाई सूत्रके पृष्ठ १६ में, ठाणांगजीके पृष्ठ १९४ में इत्यादि कई जगहाँ पर 'हियाए' इत्यादि पाठ शुभ कार्योंमें आया हुआ है। अत एव प्रतिमा पूजा भवान्तरमें सुखकारी हे, यह वात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है।
प्रतिमा पूजा करके सिधा मोक्ष नहीं होता है, ऐसा जो तुम (तेरापंथी) कहते हो, इसीसे ही प्रतिमाकी पूजाका स्वी: कार हो जाता है । आ रही सीधे मोक्षकी मात । सो तो ठीक
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