________________
श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । ७३ 的分分分分分分分分分受分分分分一代
भावार्थ:-हे भगवन् ! चमरचंचा राजधानीमें चमरसिंहासनमें अमरेन्द्र असुरराजा चमर, दिव्य भोग भोगनेको समर्थ है?
हे गौतम ! समर्थ नहीं है। हे भगवन् ! क्यों समर्थ नहीं है ?
हे गौतम ! चमरचंचा राजधानीमें सुधर्मा सभामें मानवत चैत्यस्तंभमें वज्रमय डब्बेमें जिनके सक्थी बहुत हैं । जो कि चंदनसे पूज्य हैं। प्रणामसे नमन करने योग्य हैं। वखादिसे सत्कार करने योग्य हैं। प्रतिपत्तिसे संमान्य हैं । अंतएव वे पवित्र जिन सक्थिओंकी आशातना न हो, इस लिये वह चमरेन्द्र मैथुनादि भोगोंको भोगता नहीं है । परन्तु अपने परिवारके साथ चमरेन्द्र वहाँ विचर सकता है।
इससे स्पष्ट मालूम होता है कि-जब जिनदाढाओंकी आशातनाके लिये निषेध किया है, तो फिर जिन प्रतिमाका तो कहना ही क्या?
अच्छा, अब तेरापंथी महानुभाव भगवतीसूत्रके दूसरे शतकके पहिले उद्देशके 'हियाए सुहाए खमाए ' इत्यादि पाठको ले करके यह सिद्ध करनेकी कोशिश करते हैं कि-'सूर्याभदेवने जिन प्रतिमाकी पूजाके निमित्त. जो ‘हियाए' इत्यादि शब्द कहे हैं, वे संसारके लिये हैं।' परन्तु वह ठीक नहीं है । भगवतीसूत्रके दूसरे शतकके दूसरे उद्देशमें स्कंदक तापसने, महावीर स्वामौके पास एक दृष्टान्तको ले करके बातकी कि
जैसे गाथापतिने जलते हुए अग्निसे एक बहुमूल्य पात्र • (भांड) निकाला, तब विचार करता है कि-यह मुझे हित'कारी-सुखकारी-कल्याणकारी तथा आगामी भवमें काम
लोगा । उसी तरह हे प्रभो ! मेरी आत्मा एक भांड याने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com