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वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । ६७
कामिनीका सेवन करनेवाला साधु भाव से विमुख होता है। महानुभाव ! आप लोगोंने संवेगी साधुका नाम ले करके निंदाकाकार्य किया है । इस लिये पापका पश्चात्ताप करना । स्थूलदृष्टिसे न देख करके, सूक्ष्मदृष्टि से देखोगे तो, तुम्हें मालूम होगा कि तुम्हारे साधुओं की उत्कृष्टता सम्हालनके लिये कैसे २ प्रपंचोंको ऊठाते हो ? वस, यही तुम्हारे गुरुओंकी शिक्षाका फल है ।
प्रश्न --- २२ सूर्याभदेवता जिन प्रतिमा मोक्षने अर्थ पूजी, आप केते हो, ओर रायपसेणीका पाठ बतलाते हो सोइरो उत्तर अवलतो ओहेके देवतांरा केणासू पूजी हे ओर भवनी परमपराने अर्थे पूजी, दुसरो बतीसवानाभी पूजीया है, हरेक देवता भीमाणरो अदपती हुवे तीको उपजती वेला पूजीया करे है जीणसू सूर्याब देवता बी पूजी परंपरा रीते, ओर आप फ़रमाते होके निसेसाए सबदनो अर्थ मोक्ष है सो इणरो उत्तर आहे इणीज मुताबीक पाठ भगवती सूत्रमें सतक दूर्जे उदेशे पेले लामांय धन बारे काडीयो, जठे 'नीसेसाए अणुगामीयता भविसई' पाठ आयो छै, सो ईण जगा कांई मोक्ष हुवो दोनु जगा नीसेसाए अणुगामीयताए भविसई, एक सीरीका पाठ छै, इण न्याय प्रतमा पूजी जीणमे परभोरो मोक्ष नथी.
उत्तर- " देवता के कहने से पूजाकी, उसमें लाभ नहीं है" ऐसे तुम्हारे कहने से, यह मालूम होता कि आप लोगोंका यह मानना है कि - 'दूसरे के कहने से, कोई मनुष्य कुछ कार्य करे उसको लाभ या नुकशान कुछ नहीं होता' । परन्तु यदि ऐसा मानोगे तो दूसरे के कहने से कोई संसार छोडे, दान दे, भक्ति
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