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वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
करे, विनय करे उसको लाभ नहीं होना चाहिये । दुसरेके कहनेसे हिंसादि कार्य करे, तो उसको नुकशान नहीं होना चाहिये । परन्तु नहीं, यह बात आप लोग भी नहीं स्वीकार सकते । तो फिर, यह विचारनेकी बात है कि देवताके कहनेसे पूजाकी है, तो कोई खराब कार्य तो नहीं किया है। उत्पन्न होनेके बाद सूर्याभदेवने स्वयं यह विचार किया कि हमें पूर्वपश्चात्-कल्याणकारी-हितकारी-मुखकारी-भवान्तरमें भी उपकारी-मुक्त्यर्थ क्या कार्य है ? उस समयमें देवताओंने आ करके कहा है । देखिये, इस विषयका पाठः
" तेणं कालणं तणं समयेणं सूरियाभदेवे अहुणोववण्णमेत्ते चेव समाणे पंचविहाए पजत्तिए पज्जतिभावं गच्छइ, तं जहा:- आहारपज्जत्तीए, सरीरपज्जत्तीए, इंदियपज्जत्तीए, आणपाणुपज्जनीए, भासामणपज्जत्तीए, तए तस्स सूरियाभस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स,श्मेआरूवे अज्जत्थिए, चिंतिए, पत्थिए, मणोगए, संकप्पे समुप्पज्जित्था, किं मे पुल्विं कर. णिज्जं, किं मे पच्छा करणिज्जं, किं मे पुत्विं सेयं, किं मे पच्छासेय, किं मे पुविपच्छा वि हिआए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामिअत्ताए भविस्सर ? तए तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामा
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